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[२.७] नामकर्म
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प्रश्नकर्ता : अतः लंबे आदमी को मूर्ख कहा और इसे लुच्चा कहा। दादाश्री : लंबा व्यक्ति मूर्ख बना, इसीलिए यह लुच्चा बना। प्रश्नकर्ता : हाँ, यों वापस है रिलेटिविटी।
दादाश्री : हाँ, रिलेटिविटी है न! अबव नॉर्मल हो जाए तो ठिगना होता जाता है और बिलो नॉर्मल लंबा होता जाता है। ढाई हत्था बहुत ठोस होता है। लोग पहले ढाई हत्थे से घबराते थे। अभी तो यह काल अच्छा है। बेचारे ढाई हत्थेवाले होते ही नहीं न! अरे, सभी लंबे, लंबे, लंबे बल्कि साढ़े पाँच फुट से ज़्यादा, पौने छः वगैरह, सब ऐसी हाइटवाले। हैं ज़रा बेवकूफ हैं, लेकिन कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यह अच्छा है, बेवकूफ अच्छा। बहुत पक्का इंसान हो न, तो मकान वगैरह सबकुछ पक्का रखता है। वहाँ पर इतना पक्का किया होता है कि वहाँ मोक्ष उस तक न पहुँच पाएँ। ये बेवकूफ छोड़ देते हैं, इन्हें अगर रास्ता मिल जाए तो देर ही नहीं लगेगी।
फिर, ये जो पैर की उँगलियाँ हैं न, वे कुछ लोगों की तो ऐसी भेड़बकरियों जैसी होती हैं, जानवर जैसी होती हैं, ऐसा सब होता है। यों अंगउपांग सभी एक सरीखे नहीं होते। कुछ लोगों के तो ऐसे चिपके हए होते हैं। अरे भाई, क्यों चिपक गए? अपने इन्डियनों की कान की लोलकियाँ (कान का वह हिस्सा जिसमें बूटियाँ पहनी जाती हैं) लंबी होती हैं क्योंकि वे मोक्ष में जानेवाले हैं। जो लोग मोक्ष जानेवाले नहीं हैं और हृदयमार्गी हैं, उनकी भी लोलकियाँ लंबी होती हैं। जैसी आपकी हैं, हिल रही हैं, ऐसी होनी चाहिए। फॉरेन में तो मिनिस्टर की भी यों चिपकी हुई होती हैं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादाजी, किसी के कान बड़े होते हैं, हाथ बड़े होते हैं, ऐसा भी होता है न?
दादाश्री : यदि कान बड़े हैं तो इसका मतलब क्या है कि जिनके बड़े कान हैं, वे साधु हों तो साधुपने में ज़बरदस्त आकांक्षावाला और संसार में हो तो संसार में आकांक्षा लेकिन उसके लिए इतने-इतने बड़े-बड़े कान होते हैं उसके और अपने तीर्थंकरों के इतने बड़े-बड़े कान होते हैं। ऐसे लोग मिलेंगे ही कहाँ? आजकल तो इतने छोटे-छोटे होते हैं।