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[२.७] नामकर्म
चित्रगुप्त नहीं, लेकिन नामकर्म का गुप्त चित्र
अब छठा बता रहा हूँ। अब यह जो 'मैं चंदू, मैं चंदू' नाम है, यह नामकर्म है। नाम चंदूभाई, मैं इन्जीनियर, मैं गोरा, मैं काला, मैं साँवला, मैं भंगा, मैं मोटा, मैं पतला, मैं यह हूँ, वह हूँ, ये सब नामकर्म हैं।
अब, द्रव्यकर्म एक ही है लेकिन उसके आठ भाग हैं। तो यह है नामरूप कर्म । अर्थात् रूप-रंग दिखता है, यह जो डिज़ाइन-विज़ाइन वगैरह सब दिखता है, वह नामकर्म है। फिर नामरूप उसका नाम है और यह सारा स्वरूप, यह जो देह का आकार है वह।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् हिंदुओं में जो चित्रगुप्त की बही कहलाती है कि उनके पास इतनी सारी बहियाँ होती हैं?
दादाश्री : नहीं, पर वह तो, चित्रगुप्त ही हैं न सभी! प्रश्नकर्ता : सारा गुप्त रूप से चित्रित किया है।
दादाश्री : व्यक्ति नहीं। यह तो जो शरीर गढ़ता है न, वह कौन है? चित्रकार है, नामकर्म रूपी चित्रकार है वह। इस प्रकार यह एक तरह का हिसाब है। नामकर्म रूपी चित्रकार। वह जैसी डिज़ाइन गढ़ता है, उसी अनुसार शरीर बनता है। गढ़ने के लिए किसी और को नहीं आना पड़ता। अपने आप ही। इस जगत् में किसी को कुछ करना पड़े, ऐसा नहीं है। जगत् किससे चल रहा है? तो कहते हैं कि स्वभाव से चल रहा है।
कितने ही लोगों ने कल्पनाएँ की हैं कि ब्रह्मा गढ़ते हैं यह सब । कोई