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कान में बरु (जंगली पौधे की नुकीली डंडी) डाले थे। उन्होंने कीलें नहीं ठोकी थीं लेकिन बरु डाले थे। तो वे उन्हें कितनी ज़्यादा अशाता वेदनीय देते होंगे? भगवान वेदक तो थे ही।
प्रश्नकर्ता : भगवान वेदक या भगवान का शरीर वेदक, दादा?
दादाश्री : भगवान भी वेदक। लेकिन डॉक्टर जिसे शरीर कहते हैं न, जितना भाग डॉक्टर देख सकते हैं न, फिज़िकल बॉडी, उसके लिए भी ज़िम्मेदार थे भगवान। उस वजह से वेदना होती थी।
प्रश्नकर्ता : हाँ, वेदना होती है, इसका उन्हें पता भी चलता था लेकिन हम ऐसा तो नहीं कह सकते न कि उन्हें खुद को वेदना होती थी?
दादाश्री : असर होता था लेकिन उस घड़ी उन्हें ज़बरदस्त तप रहता था। मानसिक वेदना नहीं होती थी उन्हें। वाणी की वेदना नहीं होती थी उन्हें।
प्रश्नकर्ता : यह जो शारीरिक वेदना है उसमें और मानसिक वेदना में क्या फर्क हैं?
दादाश्री : मानसिक वेदना ऐसी चीज़ है जो ज्ञान से खत्म हो सकती है और शारीरिक वेदना ऐसी नहीं है कि ज्ञान से खत्म हो जाए। दाढ़ दुःखने लगे तो उसका असर पहुँचता है अंत तक।
प्रश्नकर्ता : तो यह मानसिक वेदना किस तरह की वेदना होती है?
दादाश्री : पूरा जगत् मानसिक दुःखों में ही है न! इन लोगों को शारीरिक वेदना है ही नहीं। लोगों को मानसिक वेदना ही है और शारीरिक वेदना तो, अगर दाढ़ दुःखने लगे तो भगवान को भी पता चल जाता है लेकिन वे तप करते हैं। अंदर हृदय लाल-लाल हो जाता है। वह भी उन्हें खुद को दिखाई देता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन शरीर तो कष्ट भोगता है न? दादाश्री : शरीर भोगता है लेकिन भोक्ता वहीं पर है। तब अहंकार