________________
[२.५] अंतराय कर्म
१९७
व्याख्यान में जो सब समझाते हैं, वहाँ पर व्याख्यान में खुद समझता तो कुछ है नहीं और बहुत टेढ़ा बोलता है, वही है दर्शनांतराय और ज्ञानांतराय डालने का रास्ता। ऐसा नहीं बोलना चाहिए। वे भले ही कैसे भी आचार्य हों, महाराज हों, उन्हें जैसा भी समझ में आए वैसा बोल रहे हों लेकिन उनके बारे में टेढ़ा नहीं बोलना चाहिए। दर्शनांतराय और ज्ञानांतराय डालनेवाली चीजें यही हैं न! वहाँ पर तो बहुत कम अंतराय पड़ते हैं लेकिन यहाँ पर तो बहुत ही बड़ा अंतराय पड़ जाता है। यहाँ पर तो ऐसे अंतराय पड़ जाते हैं कि 'न जाने कितनी ही चौरासी (चौरासी लाख योनियाँ) घूमनी पड़ें।'
जो ज्ञानीपुरुष मोक्षदाता हैं, मोक्ष का दान देने आए हैं, ज्ञान-व्यान नहीं, लेकिन मोक्ष का दान, तो फिर ऐसा ज्ञान देनेवाले और लेनेवाले अगर मिल जाएँ तो क्या फिर रहेगा कोई अंतराय? किसी तरह का कोई अंतराय रहेगा क्या?
अंतराय कर्म टूट जाएँ तब देर ही नहीं लगती। आत्मा और मोक्ष में कितनी दूरी है? कोई भी दूरी नहीं है। जितने अंतराय पड़े हुए हैं, बस उतनी ही दूरी है!
प्रश्नकर्ता : ज्ञानांतराय और दर्शनांतराय टूटेंगे कैसे?
दादाश्री : वे अंतराय ज्ञानीपुरुष तोड़ देते हैं। अज्ञानता तो ज्ञानीपुरुष निकाल देते हैं, और अंतराय भी ज्ञानीपुरुष निकाल देते हैं। लेकिन कुछ प्रकार के अंतराय नहीं टूट सकते, जो ज्ञानी के भी वश के बाहर के अंतराय हैं। जिनसे विनय धर्म खंडित होता है, वे। विनय धर्म तो मोक्षमार्ग में मुख्य चीज़ है। परम विनय! ज्ञानीपुरुष के लिए एक भी उल्टा विचार, एक भी उल्टी कल्पना नहीं
आनी चाहिए। एक भी उल्टी कल्पना क्या कर सकती है? खुद की माँ के लिए कल्पना नहीं आती, तो ज्ञानीपुरुष के लिए तो? इसके बजाय कम टच (संपर्क) में रहना अच्छा है। टच में नहीं रहेगा तो विचार ही नहीं आएंगे न?
__वर्तन के अंतराय प्रश्नकर्ता : दर्शन में बहुत सारा आ जाता है लेकिन वर्तन में नहीं आता।