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[१.९] पुरुष में से पुरुषोतम
शक्ति, पुरुष और प्रकृति की प्रश्नकर्ता : पुरुषार्थ परम देवम्, हर एक की दृष्टि में पुरुषार्थ की परिभाषा अलग-अलग हो सकती है तो उसमें से पुरुषार्थ की श्रेष्ठ परिभाषा क्या है?
दादाश्री : पुरुषार्थ दो प्रकार के हैं। एक तो, खुद पुरुष होकर प्रकृति से अलग हो जाए और प्रकृति को निहारे, तो वह पुरुषार्थ कहलाता है। प्रकृति को देखता रहे। 'प्रकृति क्या कर रही है?' उसे देखता ही रहे, वह पुरुषार्थ कहलाता है। और दूसरा पुरुषार्थ, इस जगत् की दृष्टि से भ्रांत पुरुषार्थ भी सच्चा माना जाता है। क्योंकि पुरुषार्थ तो है ही न! उसने उल्टा किया तो यह उल्टा फल मिला। सीधा किया तो सीधा फल मिला।
प्रश्नकर्ता : पुरुष शक्ति और प्राकृत शक्ति के बीच में भेद स्पष्ट करने की विनती है।
दादाश्री : पुरुष शक्ति अर्थात् जो पुरुषार्थ सहित हो, स्व पराक्रम सहित हो। ओहोहो! हम स्व पराक्रम से पूरी दुनिया में घूमते हैं, एक घंटे में! मैंने आपको पुरुष बनाया उसके बाद, आपके शुद्धात्मा हो जाने के बाद आपकी शक्तियाँ बहुत ही बढ़ने लगती हैं। लेकिन यदि इसमें लक्ष रखोगे, तब और हमारे टच में रहोगे तो बहुत हेल्प करेगी।
यह सब प्रकृति का है, प्राकृत शक्ति है। अब फर्क सिर्फ इतना ही है कि वह (चंदूभाई) प्रकृति में तन्मयाकार रहता है और हमें तन्मयाकार नहीं रहना है। प्रकृति जो करती है उसे देखते रहना है।