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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
उससे अंतराय कर्म डलते हैं क्योंकि उसे जो यह लाभ होनेवाला था न, तो लाभ में अंतराय आएगा। और फिर यहाँ पर कहता है 'मैं कोई भी व्यापार करूँ लेकिन चलता ही नहीं है, लाभ ही नहीं मिलता।' अरे भाई अंतराय कर्म लेकर आया है, तो फिर कैसे लाभ मिलेगा!
जहाँ जाए वहाँ अंतराय, जहाँ जाए वहाँ अंतराय। लोगों ने ऐसे अंतराय डाले होंगे या नहीं? जहाँ गया वहाँ । अक्ल का बारदान है न! कोई दे रहा हो तो, उसमें यह बीच में पड़ता है। 'अरे भाई, तुझे वह सब देखने की ज़रूरत कहाँ है।' वह दे रहा है, उसमें हाथ नहीं डालना चाहिए। लेकिन वह अक़्लवाला उसे सलाह देता है, 'तुझ में अक्ल नहीं है, ऐसा तो कहीं दिया जाता होगा'? इस तरह अंतराय डाले। उसी के अंतराय हैं सभी लोगों को क्योंकि आत्मा है। भले ही प्रकृतिमय है। प्रकृति भले ही रही लेकिन जिसने अंतराय नहीं डाले हैं न, उसे तो जिस चीज़ की इच्छा होती है, वह सामने आ जाती है।
जबकि इसने तो खुद ने उधार दिया हो, उसने दस हज़ार उधार दिए हों, तो जब इच्छा होती है तब वापस मिल जाते हैं अर्थात् उधार दिए हुए भी वापस आ जाते हैं अपने घर। जब इच्छा होती है न कि 'अब यह सब बंद कर देना है,' तो रुपये वापस आने लगते हैं। जिसने अंतराय नहीं डाले हैं, उसे।
और अगर अंतराय डाले हों न, तो उसे बारह महीनों तक वहाँ पर वसूली के लिए जाना पड़ता है। वह वहाँ पहँचकर पूछे, 'सेठ कहाँ गए हैं?' तो कहेंगे 'अभी-अभी बाहर गए हैं,' तब वह पूछता है 'कितने बजे मिलेंगे?' 'साढ़े तीन बजे और उसके बाद चार-साढ़े चार बजे निकल जाएँगे, साढ़े तीन बजे आना' तो खुद के घर लौटने के बाद भी उसे पूरे दिन उसी का ध्यान रहता है बेचारे को। खाते समय भी उसी का ध्यान रहता है। जो साधना की, वही साधना चलती रहती है न! यह साधना की है तो उसी का ध्यान रहा करता है। स्त्रियों को ऐसा ध्यान नहीं रहता। वे तो वसूली के लिए जाकर वापस आएँ तो कुछ भी नहीं और ये तो अक़्लवाले हैं न? इमोशनल। वे मोशनवाली हैं। बाद में फिर से साढ़े तीन बजे जल्दी-जल्दी