________________
[२.५] अंतराय कर्म
१८१
चीजें हाज़िर हो जाती हैं टेबल पर। जिस समय में आम सुना ही नहीं हो, उस समय उनके टेबल पर आम रखे होते हैं। सबकुछ हाज़िर हो जाता है अपने आप ही, प्रयत्न किए बगैर, सोचे बगैर।' उसे क्या कहेंगे? अनंत भोग।
प्रश्नकर्ता : स्व-लब्धि का उपयोग करते हैं? दादाश्री : जो स्व-लब्धि का उपयोग करे, वह ज्ञानी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् खुद के आत्मा के गुणों में रम जाए। आत्मा के गुणों में निरंतर रमा हुआ रहे, तो उसे अनंत वीर्य माना जाएगा? उसे अनंत उपयोग कहा जाएगा?
दादाश्री : इस प्रकार से ज्ञानी भी रह सकते हैं। अनंत वीर्य ऐसा नहीं होता। अनंत वीर्य तो, यों हाथ रखे तो भी कुछ का कुछ हो जाता है। अनंत वीर्य!
अनंत दान! देखो न हम रोज़ मोक्ष का दान देते ही हैं न! कितने लोग मोक्ष प्राप्ति करते हैं। मोक्ष प्राप्ति के बाद फिर जाते नहीं हैं। है न!
फिर है अनंत दान-लब्धि ! उसकी इच्छा हो, उसके पूर्व कर्म हों, तो अरबों रूपये का दान दे देता है और जिसके पूर्व कर्म नहीं हों, वह चार आने ही देता है। पहले का जो हिसाब है न, वही तेरे बहीखाते के अनुसार देना होता है। तुझे पूरी छूट है। अनंत दान की छूट है। अगर आप नोबल हो तो पिछले जन्म में आपने लाखों रूपये देने का, सभी को देने का तय किया होता है। अगर कोई नोबल नहीं है तो कहेगा, 'आठ-आठ आने ही देना न सभी को।' तो कोई आठ आने देता है. जबकि कोई लाख भी देता है। दोनों की शक्ति एक सरीखी ही है लेकिन स्वभाव छोड़ता नहीं है न!
प्रश्नकर्ता : वहाँ पर भी उसे स्वभाव नहीं छोड़ता?
दादाश्री : हाँ, भोग में भी स्वभाव नहीं छोड़ता। भोग में भी कहता है, 'हमें करेले नहीं खाने हैं।' और कोई कहता है, 'मुझे करेले ही खाने