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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
मिल जाता है, ऐसे इच्छा होते ही कि 'अब जाना है, उससे पहले ही किसी की गाड़ी आकर खड़ी हो चुकी होती है। हम गाड़ी नहीं रखते, कुछ भी नहीं रखते।
प्रश्नकर्ता : नहीं, यानी मुझे यह जानना था कि सेन्ट परसेन्ट क्यों नहीं? आपने एटी परसेन्ट क्यों कहा?
दादाश्री : सेन्ट परसेन्ट नहीं है। इतने तो हमने भी अंतराय डाले हुए हैं, थोड़े हल्के। नहीं तो हमारे लिए भी वैसे कुछ अंतराय नहीं रहते, बीस प्रतिशत जितना नहीं है इतना, लेकिन है थोड़ा बहुत। लेकिन उसके बजाय अगर हम बीस प्रतिशत कहें तो अच्छा लगेगा, ताकि पीछे से मन में ऐसा नहीं हो कि गलती हो गई। इसके बजाय पाँच-दस प्रतिशत पहले से ही ज्यादा डाल दें तो परेशानी तो नहीं। अस्सी प्रतिशत क्या कम है इस काल में? अस्सी प्रतिशत मार्क्स आते हैं। क्या आपने ये सब नहीं देखा है? हमारी ज़रूरत की सभी चीजें सामने आ जाती हैं।
प्रश्नकर्ता : हाँ सामने से आती हैं। दौड़ती हुई आती हैं।
दादाश्री : सभी चीजें सामने से आ मिलती हैं। हमे ज़रूरत नहीं हैं इनमें से किसी भी चीज़ की।
अंतराय कर्म की करके पूजा, बाँधे ज्ञानांतराय
प्रश्नकर्ता : धर्म में एक ऐसी पद्धति चली है कि घर-संसार कुछ ठीक से नहीं चल रहा हो तो अंतराय कर्म के लिए पूजा करवा देते हैं।
दादाश्री : अंतराय कर्म क्या है, वही नहीं समझते हैं। कैसे पड़ते हैं, वह भी नहीं समझते। अंतराय डालता जाता है और फिर विधि बोलता जाता है। भान ही नहीं है वहाँ पर! अब विधि बोलने से क्या फायदा हुआ? उसने ज्ञानांतराय बाँधा।
प्रश्नकर्ता : विधि करने से ज्ञानांतराय किस तरह पड़ते हैं?
दादाश्री : हाँ, लेकिन जहाँ पर ज्ञान की विधि करनी है, वहाँ पर अज्ञान की विधि करते हैं, इसलिए ज्ञानांतराय पड़ा।