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कहलाते हैं। स्त्री-पुरुष वगैरह उपभोग कहलाते हैं। बार-बार जिनका उपयोग हो सके वे उपभोग कहलाते हैं।
प्रश्नकर्ता : सही कह रहे हैं आप, जैसे कि तीर्थंकर बोल रहे हों। इतनी बारीकी से डिमार्केशन किया है।
लाभांतराय प्रश्नकर्ता : अब लाभांतराय क्या है?
दादाश्री : ज्ञानांतराय की वजह से सभी अंतराय पड़ जाते हैं। लाभांतराय अर्थात् किसी को किसी भी प्रकार का लाभ हो रहा हो, और उसमें हम रुकावट डालें, तो उससे हमें लाभांतराय पड़ जाता है। कोई अच्छे कपड़े पहने और हम कहें कि 'अरे, बेकार ही पैसे पानी में मत डालना' तो वह उपभोग अंतराय है और जलेबी-लड्डू वगैरह खा रहा हो, तब कहें, 'अरे, रोज़-रोज़ ये सब क्या खाता रहता है? यह तो कोई बात है! भीख माँगनी है या क्या है?' तो इससे भोग अंतराय डाले। ये तरह-तरह के अंतराय डालकर ही तो यह जगत् उत्पन्न हो गया है और फिर कहेगा, 'भगवान देता नहीं है।' अरे भाई, तेरे ही डाले हुए अंतराय हैं, तो भगवान क्यों इसमें बीच में हाथ डालें!
दानांतराय, वीर्यांतराय प्रश्नकर्ता : अनंत वीर्य का मतलब क्या है? अनंत वीर्य, किस तरह से बनता है?
दादाश्री : हाँ। यही है अनंत वीर्य की दशा। पूरे दिन हमारा यह आत्मवीर्य नहीं देखते? तीर्थंकरों में इससे कुछ खास प्रकार का ज्यादा बढ़ा हुआ होता है, बस इतना ही। उसी को वीर्य कहते हैं। अन्य कोई वीर्य वगैरह कुछ नहीं होता, आत्मवीर्य। अनंत लाभ-लब्धि होती है।
____ अनंत भोग, अनंत उपभोग, अनंत वीर्य और अनंत दान, ये सभी होते हैं। अब अनंत भोग का मतलब क्या है? तो वह ऐसा है कि वे खुद तो कोई चीज़ भोगते ही नहीं हैं। वे खाते तो हैं सिर्फ दो-तीन चीजें और सौ