________________
आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
रहते थे, वे अपनी प्रकृति को ही देखते रहते थे। अंबालाल भाई शॉल पहनकर बैठे हैं, वह सब मुझे यहाँ बैठे दिखता है और बात कर रहे हैं, वह भी मुझे दिखता है। उस समय हाथ कैसे नचाते हैं, वह भी दिखता है। उनके सभी क्रिया कलाप दिखाई देते हैं
I
दादा के बहरेपन का रहस्य
वे डॉक्टर वापस मुझे कान में मशीन रखने को कह रहे थे। हम से कह रहे थे, ‘दादा कुछ रिपेयर करवा लीजिए।' मैंने कहा 'नहीं-नहीं भाई, नहीं करवाना है ।' तब कहने लगे, 'वह सेवा हमें मिलेगी न !' डॉक्टर तो अच्छे इंसान थे, भावना ऐसी थी कि सेवा करनी है। डॉक्टर को तो लाभ होता। क्योंकि ज्ञानीपुरुष का इलाज किया इसलिए उन्हें पूरा लाभ मिल जाता, उनकी पूरी भावना थी इसलिए । तब मैंने कहा, 'लेकिन आप मेरा नुकसान नहीं देख रहे हो ।' तब कहने लगे, 'आपको क्या नुकसान है ? ' तब मैंने कहा, ‘यह मेरे कर्म का फल है, इस कर्म को खपाना है। हमें अभी इसे पूरी तरह से खपा देना है । अन्य कोई उपाय नहीं करेंगे हम। हम उपाय नहीं करते।'
१७८
अर्थात् अगर हम मशीन लगवा दें तो हमारे अंतराय कैसे पूरे होंगे? अंतराय को धक्का देना कहा जाएगा इसे । तब कोई पूछे कि 'दादा ने कौन से अंतराय डाले होंगे?' तो वह यह है कि, 'दादा ने ऐसे अंतराय डाले हैं कि किसी ने कुछ कहा, तो हट, हट, हट, हट!' अर्थात् किसी की सही बात भी नहीं सुनी इसीलिए बहरापन आ गया। आपकी सही बात हो फिर भी अगर नहीं सुनूँ तो कितनी बड़ी अक्लमंदी है ! सही बात को भी न सुने । उससे फिर बहरापन नहीं आएगा तो और क्या आएगा? जब मैं डॉक्टरों को समझाता हूँ, तब डॉक्टर कहते हैं, 'हाँ।' मैंने कहा, ‘इसे भोग लेना पड़ेगा अब। कोई व्यक्ति सही बात कहे, उसे भी नहीं सुने, बस खुद की ही अक़्ल के गुमान में रहना ? बस - बस, समझ गया, समझ गया, समझ गया। सामनेवाले को पूरा बोलने भी नहीं देते बेचारे को ! ऐसा नहीं होता क्या कहीं पर? आपके साथ कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ है?
प्रश्नकर्ता : होता है।