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[२.५] अंतराय कर्म
निकलता है।‘अब साढ़े तीन होने को आए हैं, अब दस मिनट में मैं वहाँ पहुँच जाऊँगा।' यानी कि वह उसी जागृति में रहता है। और वहाँ पर उस आदमी की पत्नी ने उसे कहा होता है कि 'वसूलीवाले आए थे ।' तब वह कहता है, ‘ठीक है। भले ही आए, कोई परेशानी नहीं है। आज तो मुझे बहुत जल्दी है और उनसे कहना कि ' वे कह रहे थे, कल फिर आना । ' और वह सवा तीन बजे निकल जाता है । तब फिर देखो तो यह सेठ चिढ़ता रहता है। 'अरे, मैंने इसे क्यों उधार दिए? मैंने इसे क्यों उधार दिए ?' तब अगर कोई पूछे कि 'भाई, क्या उसका दोष है?' तो 'नहीं भाई, तूने जो अंतराय डाले हैं न, उसी का यह दोष है । तूने लोगों के काम में अंतराय डाले हैं, यह दोष है। उस आदमी का दोष नहीं है । जब तेरे अंतराय खत्म हो जाएँगे, तब वह सीधा हो जाएगा ।'
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हमें इच्छापूर्वक खाने-पीने का सभी कुछ..... अंदर आत्मा है, जिस चीज़ की इच्छा हो वह सामने आए, ऐसा है । उसके बजाय देखो प्रयत्न करता है फिर भी काम नहीं होता और ऊपर से कभी वह झगड़ा कर लेता है, वह अलग। 'क्या चक्कर लगाते रहते हो रोज़-रोज़, तुम्हारे पैसे कहीं चले जाएँगे क्या?' तो वह चिढ़ जाता है । फिर कहता है, ‘अब ऐसा कह रहा है ऊपर से। एक तो पैसे दिए हैं और फिर ! ' यह तेरा ही दोष है । उसका दोष नहीं है। वह जो कह रहा है न, वह तेरा ही प्रतिस्पदंन है । यह तूने जो प्रोजेक्ट किया है, वही प्रोजेक्ट है यह । आपको कभी ऐसा कोई अनुभव हुआ है ?
खुद ब्रह्मांड का मालिक है फिर भी......
यह तो, ये सारे अंतराय हैं, वर्ना आप पूरे ब्रह्मांड के मालिक हो। तब कहता है, ‘अनुभव क्यों नहीं होता?' सभी अंतराय छूट गए तो आप मालिक तो हो ही। अंतराय किसने खड़े किए हैं? भगवान महावीर ने ? 'नहीं, तूने खुद ने ही ।' 'यू आर होल एन्ड सोल रिस्पोन्सिबल फॉर यॉर लाइफ।' खुद ही खुद ने खड़े किए हैं। ज़रा बारीकी से नहीं चलेंगे तो फिर अपनी गाड़ी कैसे चलेगी? यहाँ पर अंतराय कहते हैं कि 'बारीकी से हिसाब सेट कर लो। इन भाई को मोटा रास नहीं आएगा,' कहेगा । 'हाँ! अरे, अनंत