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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
दादाश्री : ज्ञानावरण तो आवरण है और अज्ञान का मतलब तो खुद का भान ही नहीं है। ज्ञानावरण तो कम-ज्यादा भी हो सकता है लेकिन अज्ञान तो अज्ञान ही रहता है। आपका अज्ञान तो निकाल लिया है लेकिन ज्ञानावरणीय पूरा नहीं निकल सकता। यह आपका अज्ञान तोड़ दिया है लेकिन ज्ञानावरणीय का कुछ भाग टूट गया लेकिन बाकी का जो बचा है वह तो धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। पहले अज्ञान जाता है उसके बाद, ज्ञानावरणीय आवरण धीरे-धीरे खत्म हो जाए तो पूर्णिमा ! पूनम का चाँद। तब तक बीज का चाँद रहेगा।