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[२.४] मोहनीय कर्म
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टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट्स एन्ड यू आर परमानेन्ट। और टेम्परेरी में एडजस्टमेन्ट की प्राप्ति के लिए आप गए इसलिए आप भी टेम्परेरी हो
गए।
और फिर डॉक्टर से कहते हो, 'साहब, मुझे बचाइए।' अरे भाई, साहब की बहन मर गई तो वह तुझे क्या बचाएगा! डॉक्टर साहब की बहन नहीं मर जाती होंगी? लेकिन फिर भी यह गिड़गिड़ाता है, 'साहब, मुझे बचाइए।' इसका क्या कारण है? उसमें भय घुस गया है कि अब मैं मर जाऊँगा। जैसा वे नगीनदास सेठ कहते हैं न, 'मैं प्रेसिडेन्ट हूँ,' ऐसा ही इसमें हुआ है। इसी को कहते हैं मोह। अन्य कोई भी सत्ता पराई है, खुद की सत्ता नहीं है। आत्मा की सत्ता चली गई और उस पराई चीज़ की सत्ता आ गई। अर्थात् परसत्ता में आ गया। और फिर परसत्ता को खुद की सत्ता मानने लगा कि 'मैं ही कर रहा हूँ यह।' तो फिर शुरू हो गया तूफान।
मूल कारण है मोह और मोहनीय तो मैं चंदूभाई हूँ,' वही मोह है। और कौन सा मोह? यह हो तो सभी मोह खड़े होंगे, वर्ना अगर ऐसा नहीं होगा तो कोई भी मोह खड़ा नहीं होगा। मूल कारण 'मैं चंदूभाई,' वही मोह है। अब इस मोह को अगर तोड़ने जाएँ तो वह लाख जन्मों में भी कैसे छूट पाएगा? 'मैं चंदूभाई हूँ,' वह मोह नहीं छूट सकता। वही मोह की जड़ है। फिर मोह का पेड़ तो रहेगा ही न! देखो आप में जड़ खत्म हो गई तो सबकुछ सूखने लगा है न झटपट! और फिर कहेगा, 'मैं गुरुजी हूँ।' आत्मा जाना नहीं, फिर भी कहता है। इसका कारण यह है कि पट्टियाँ बाँधी हुई हैं अर्थात् खुद आत्मा है फिर भी बोलता है कुछ अलग।
प्रश्नकर्ता : आत्मा पर परतें चढ़ गई हैं।
दादाश्री : परतें चढ़ गई हैं, पट्टियाँ, चश्मे । काले चश्मे पहने तो काला दिखता है, पीले पहने तो पीला दिखता है। जैसे चश्मे पहने वैसा ही दिखता है।