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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
'अरे भाई, आप अक़्लमंद इंसान हो, यह क्या कह रहे हो आप ! ' अर्थात् जो शराब पी थी, उसकी सत्ता आ गई। खुद की सत्ता चली गई । खुद की सत्ता चली गई। तो फिर सत्ता किसकी है? हुकूमत किसकी है? तो फिर वे सेठ क्या कहते हैं कि 'मैं तो प्रेसिडेन्ट ऑफ इन्डिया हूँ,' इसे मोह कहते हैं। खुद जो नहीं है, खुद अपने आपको वही मानता है । अर्थात् दूसरी प्रकार से बोलना, वह सारा मोह कहलाता है । 'मैं इनका पति हूँ, मैं इनका बाप हूँ, मैं इनका बेटा हूँ,' यह सारा मोह है !
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ऐसा कब तक रहता है? जब तक शराब का असर है तब तक और साइकोलॉजिकल इफेक्ट, अगर कोई कहे न कि 'तू तो पति है, पति है, पति है,' तो उसे ऐसा लगने लगता है कि 'मैं पति हूँ।' यही है मोह!
यह जो मोह है उससे, ‘मैं कौन हूँ', पर आवरण आ जाता है और फिर दूसरी तरह से ‘मैं इनका पति हूँ, इनका मामा हूँ, इनका चाचा हूँ,' इस तरह ज्ञानावरण आ जाता है। पहले दर्शनावरण आता है, यानी कि अपनी सारी श्रद्धा बदल जाती है । 'मैं शुद्धात्मा हूँ, ' वह श्रद्धा चली जाए और 'मैं चंदूभाई हूँ वही सच है,' ऐसा माने तो उससे फिर ज्ञानावरण आ जाता है। वही अनुभव में भी आ जाता है । उसके बाद मोह से पहली शुरुआत होती है। शुरुआत मोहनीय, फिर नया दर्शनावरण, फिर नया ज्ञानावरण आता रहता
है।
शराब के नशे की वजह से बोलता है । उसे ऐसी भ्रांति उत्पन्न हो गई इसीलिए फिर खुद का स्वरूप भूल गया । इस प्रकार इन लौकिक लोगों ने जहाँ पर सुख माना है, उसी प्रकार हमने भी उस संज्ञा से सुख माना कि इसी में सुख है । ज्ञानी की संज्ञा से सुख माना होता तो निबेड़ा आ जाता लेकिन लोगों ने जहाँ माना हम भी वहीं पर सुख ढूँढने गए। इससे मोहनीय आवरण आ गया। फिर हम जो भोजन करते हैं उस भोजन से नशा चढ़ता है। और उससे पूरे दिन 'ये मेरे ससुर हैं, ये चाचा हैं, मामा हैं, फूफा हैं,' ऐसा बोलता रहता है | क्या सचमुच में हैं? क्या कोई ससुर रहता है हमेशा के लिए? कब तक ससुर है वह ? जब तक पत्नी डायवॉर्स न ले ले, तभी तक ससुर है । अर्थात् इस प्रकार ऑल दीज़ रिलेटिव्स आर