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[२.२] ज्ञानावरण कर्म
किसी को 'समझते ही नहीं हो,' ऐसा कहें तो फिर क्या ये सब बेवकूफ ही हैं? ऐसा कहते हैं या नहीं कहते लोग?
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प्रश्नकर्ता : कहते हैं, ये बुद्धिवाले लोग ऐसे ही कहते हैं कि ‘ये समझता नहीं है।'
दादाश्री : हाँ, ऐसे कहता है सामनेवाले को कि 'आप नहीं समझोगे'। ऐसा कहना, वह सब से बड़ा ज्ञानावरण कर्म है। 'आप नहीं समझोगे' ऐसा नहीं कहना चाहिए, लेकिन 'आपको समझाऊँगा' ऐसे कहना चाहिए। ‘आप नहीं समझोगे' कहने से तो सामनेवाले के दिल पर घाव लगता है!
प्रश्नकर्ता : ज्ञानी मिल जाएँ तब भी ज्ञानावरण कर्म न टूटें, क्या ऐसा हो सकता है?
दादाश्री : टूट जाता है । वह खुद टेढ़ा हो तो नहीं टूटता ।
प्रश्नकर्ता : अगर उसका ज्ञानावरण कर्म बहुत पक्का (भारी) हो, तो वह ज्ञानी से मिलने पर भी कोई मेल नहीं बैठता न?
दादाश्री : अगर उसमें टेढ़ापन हो तो फिर सब टेढ़ा ही रहेगा। मालिक टेढ़ा नहीं हो तो कुछ भी नहीं होगा ।
फर्क, अज्ञान और ज्ञानावरण में
प्रश्नकर्ता : ज्ञान का आवरण कैसे हट सकता है ?
दादाश्री : 'मैं चंदूभाई हूँ, इनका पति हूँ, मैं डॉक्टर हूँ।' आप ऐसा कह रहे थे न, वही ज्ञानावरण है। इस ज्ञान के मिलने के बाद उतना ज्ञानावरण टूट गया। अब जैसे-जैसे आज्ञा का पालन करोगे वैसे-वैसे आगे का भी टूटता जाएगा। अब इगोइज़म नहीं कूदेगा। खुद के वश में रहा जा सके, इतना ज्ञानावरण टूट गया है लेकिन समाधि तो, जितना आज्ञा का पालन करेंगे उतनी ही रहेगी ।
प्रश्नकर्ता : अज्ञान और ज्ञानावरणीय कर्म, इन दोनों में क्या फर्क है?