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[१.९] पुरुष में से पुरुषोतम
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पुरुष का पुरुषार्थ होने से दिनों-दिन वह पुरुष में से पुरुषोत्तमपने में आता जाता है। पुरुषोत्तम परमात्मा बन जाता है। पुरुष अंतरात्मा है और पुरुषोत्तम परमात्मा। बस पुरुषोत्तम बनने तक ही वह अंतरात्मा है और पुरुष बना तभी से पुरुषोत्तम बनने की शुरुआत हुई। अस्तित्व, 'मैं हूँ', इसका तो पूरी दुनिया को भान है, जीवमात्र को भान है कि 'मैं हूँ।' 'मैं क्या हूँ?' वह भान नहीं है। उस वस्तुत्व का भान नहीं है। यदि 'मैं' 'पुरुष हूँ', ऐसा हो गया तो फिर सबकुछ हो गया। उसके बाद पूर्णत्व अपने आप ही होता रहता है, पुरुष हो जाने के बाद! यह गणित सादा है या मुश्किल है?
प्रश्नकर्ता : बिल्कुल आसान।
दादाश्री : हाँ, बिल्कुल ही आसान है यह तो! मुझे तो ऐसा गणित आ गया, सभी उदाहरण आ गए। उलझनों में से बाहर निकल गया और स्वतंत्र होकर घूमा!