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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
सकते। केवलज्ञानियों ने यह सब नहीं बताया है। केवलज्ञानियों ने तो कुछ भाग ही बताया है।
प्रश्नकर्ता : उन्हें तो फिर कुछ रहा ही नहीं न दादा। आत्मा के अलावा प्रकृति का कुछ भी नहीं। इसीलिए वह वर्णन बंद ही रहा है।
दादाश्री : हाँ, बाहर नहीं आया है। ओपन नहीं हुआ है।
प्रश्नकर्ता : इसीलिए दादा की वाणी में सभी लोगों के लिए क्रियाकारी हो जाता है कि इसमें सबकुछ खुल्लमखुल्ला है। एक तरफ
आत्मा का खुल्लमखुल्ला है और दूसरी तरफ प्रकृति का भी खुल्लमखुल्ला है। अर्थात् कहीं भी उलझन नहीं होती। और अंत में 'मैं, बावा और मंगलदास,' वह तो हद ही कर दी।
दादाश्री : हाँ, हद कर दी वह तो! मुझे खुद को भी लगता है कि यह तो हद कर दी!!