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[१.४] प्रकृति को निर्दोष देखो
इसमें दोषित कौन? प्रकृति तो सहज है, लेकिन बुद्धि दखल करती है। प्रकृति को पंखा माफिक नहीं आता तो उसमें पंखे का क्या दोष है? प्रकृति का क्या दोष है? दोष दिखना बुद्धि के अधीन है, वह आत्मा के अधीन नहीं है।
संजोगानुसार प्रकृति बनती है और प्रकृति के अनुसार संसार चलता है। इसमें किसका दोष देखना है?
ये सभी प्राकृत दोष हैं। इनको चेतन के दोष मानते हैं इसीलिए तो यह संसार कायम है। वास्तव में कोई दोषित है ही नहीं। जब प्रकृति करती है, उस समय आत्मा मालिक नहीं रहता। प्रकृति बनते समय आत्मा भ्रांति से मालिक बन जाता है और छूटते समय आत्मा मालिक नहीं रहता।
प्रकृति अर्थात् क्या? तू बावड़ी में बोले कि 'तू नालायक है।' तो उससे फिर प्रकृति बन जाती है और फिर वह बोलती है वही प्रकृति है। जब वह प्रकृति बोलती है तब हमें बावड़ी के प्रतिस्पंदन का पता नहीं चलता कि पहले क्या कहा था हमने? अतः यह सब प्रकृति के दोष हैं।
प्रकृति किस तरह बदली जा सकती है? प्रश्नकर्ता : बरसों से जो प्रकृति स्वभाव पड़ चुका हो, वह किस तरह बदला जा सकता है?
दादाश्री : अपनी प्रकृति को हम जानें कि इस प्रकृति में ये गलतियाँ हैं इतना जानें तो बस हो गया, इसी को बदलना कहते हैं। भूल को भूल