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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
दादाश्री : लोभ के बजाय संतोष रहता है इसलिए लोग कहते हैं,
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'देखो न, 'इन्हें कुछ चाहिए ही नहीं ।' जो कुछ भी हो, वह चलता है!" ऐसे गुण उत्पन्न हो जाएँ तब भगवान कहलाते हैं ।
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वे
प्रश्नकर्ता: लोगों को जब उनकी सरलता और क्षमा दिखती है तब किसमें होते हैं?
खुद
दादाश्री : खुद मूल स्वरूप में होते हैं। लोग ऐसा कहते हैं, पुद्गल ऐसा दिखता है इसलिए । पुद्गल का वर्तन ऐसा दिखाई देता है इसलिए लोग कहते हैं, 'ओहोहो ! कैसी क्षमा रखते हैं ! इन्हें देखो न, हमने गालियाँ दीं लेकिन इनके चेहरे पर कोई भी असर नहीं हुआ। कितनी क्षमा रखते हैं और फिर यह कहावत भी बोलते हैं कि 'क्षमा वीरस्य भूषणम्।' अरे नहीं है ! वीर भी नहीं है, क्षमा भी नहीं है । ये तो 'भगवान हैं!' और ऊपर से कहते हैं, 'क्षमा मोक्ष का दरवाज़ा है ।' अरे भाई, यहवाली क्षमा नहीं, वह तो सहज क्षमा । जितना क्षमा सुधार सकती है, वैसा कोई नहीं सुधार सकता। इंसान जैसा क्षमा से सुधरता है, वैसा किसी भी चीज़ से नहीं सुधर सकता। पीटने से भी नहीं सुधर सकता। यह ‘क्षमा वीरस्य भूषणम्' कहलाता है।
अंत में प्रकृति भी बन जाए भगवान स्वरूप
प्रकृति आत्मा जैसी बन जाएगी तब छूटा जा सकेगा, यों ही नहीं छूटा जा सकता। जब प्रकृति को लोग भगवान कहेंगे, प्रकृति भगवान स्वरूप बन जाएगी, किसी को दुःख न दे, बहुत सुंदर प्रकृति हो, खुद भगवान बन जाए, तब अपने से छूटा जा सकेगा। अभी प्रकृति भगवान होने लगी है। अब पहले जो कर रही थी, उसके बजाय कुछ बदलाव कर लिया है न प्रकृति ने या नहीं हुआ बदलाव ? प्रकृति अभी भगवान बन रही है।
महावीर भगवान का पुद्गल अंत में जब भगवान बन गया, तब वे मुक्त हुए। भगवान बनाना ही पड़ेगा इसे।
प्रश्नकर्ता 4:3 सभी के लिए एक ही नियम है?