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[१.८] प्रकृति के ज्ञाता-दृष्टा
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करके लाए हैं। अतः फिर जैसी रिकॉर्ड होती है, वैसी ही बजती रहती है पूरे दिन। तुझ में तेरी रिकॉर्ड बजती है, इसमें इसकी रिकॉर्ड बजती है। तूने सुनी नहीं है तेरी रिकॉर्ड? तेरी रिकॉर्ड को सुना है? ऐसा! बहुत अच्छी लगती है? अच्छी नहीं लगती? नहीं? जबकि इस भाई को पसंद है खुद की रिकॉर्ड। पसंद नहीं है रिकॉर्ड? प्रकृति अर्थात् रिकॉर्ड किया हुआ। वह फिर बजती ही रहती है पूरे दिन! उसे देखते रहना है।
प्रश्नकर्ता : प्रकृति को जैसे-जैसे देखें, वैसे-वैसे कम होती जाती
है?
दादाश्री : कम हो जाती है इसलिए फिर से बीज नहीं डलते। ऐसा लगे कि इन अभिप्रायों ने अंदर उलझा दिया है तो फिर देखो। देखने से शुद्धता को प्राप्त करता है। जैसे-जैसे शुद्धात्मा को देखे वैसे-वैसे प्रकृति शुद्धता को प्राप्त करती है।
प्रश्नकर्ता : जब तक प्रकृति को देखे नहीं, तब तक कम नहीं होती?
दादाश्री : जब तक प्रकृति को देखे नहीं तब तक मोक्ष में नहीं जा सकते।
प्रश्नकर्ता : हम अपनी खुद की प्रकृति को देखते रहें तो शुद्धिकरण हो जाएगा उसमें?
दादाश्री : तब आप ज्ञाता-दृष्टा बन गए, ऐसा, कहा जाएगा। खुद की प्रकृति को देखना, वही है ज्ञाता-दृष्टा पद। ये पेड़-पत्ते वगैरह देखना, वह ज्ञाता-दृष्टापन नहीं है। वह तो बुद्धि भी देख सकती है, वह इन्द्रियगम्य है लेकिन अतिन्द्रिय ज्ञान से तो यह पूरा जगत् जैसा है वैसा दिखाई देता
है।
प्रश्नकर्ता : अब यह प्रकृति कम हो जाए, उसके लिए ज्ञानी दृष्टि बदल देते हैं न?
दादाश्री : तू अलग है और यह अलग। अब इस प्रकृति को तुझे देखना है। जैसे सिनेमा में फिल्म देखते हैं न, वैसे इस प्रकृति में हम यह