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[१.५] कैसे-कैसे प्रकृति स्वभाव
प्रश्नकर्ता : और इंसान हमेशा कड़वा ही रहेगा, ऐसा नहीं कह
सकते।
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दादाश्री : नहीं! हमें पहचान लेना चाहिए कि इस व्यक्ति में क्या है? साधारण रूप से ऐसा देख लेना चाहिए। जैसे कि ये भाई हैं न, इन्हें ऐसे जाँच लिया, पहचान सकते हैं कि ये भाई ऐसे ही हैं। कल सुबह अगर चेन्ज हो जाएँ तो बड़ा महान ज्ञानीपुरुष बन सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन लगभग पूरी जिंदगी मनुष्य की प्रकृति एक जैसी रह सकती है क्या?
दादाश्री : हाँ। रह सकती है न! कई लोगों में रहती है इसीलिए लोग कहते हैं न कि प्राण और प्रकृति दोनों साथ में जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा सिद्धांत नहीं है कि ऐसी ही रहेगी? दादाश्री : इंसान के लिए नहीं है, बाकी के सभी जीवों के लिए ऐसा ज़रूर है।
प्रकृति को पहचानकर उससे काम लेना चाहिए। तू झक पर चढ़े और मैं भी ऐसा होऊँ कि झक कर लूँ तो फिर मज़ा आएगा? नहीं! मैं जान जाता हूँ कि यह झक पर चढ़ा है तो फिर मुझे वहाँ पर नरम हो जाना चाहिए क्योंकि झक पर चढ़नेवाले का गुनाह नहीं है । उसकी यह प्रकृति ही ऐसी है। ज्ञान चाहे कितना भी हो लेकिन प्रकृति के अनुसार झक पर चढ़ता ही
है।
प्रश्नकर्ता : झक पर चढ़ना, वह प्राकृतिक गुण कहलाता है ? दादाश्री : हाँ। झक पर चढ़ना प्राकृतिक गुण है ।
प्रश्नकर्ता : प्रकृति क्या अहंकार की है ?
दादाश्री : हाँ, अहंकार की ! नहीं तो फिर और किस की?
प्रश्नकर्ता : झक पर चढ़ना, उसे प्रकृति का गुण कहा है, फिर भी
यों तो कहते हैं न कि यह झक अहंकार की है ।