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[१.७] प्रकृति को ऐसे करो साफ...
वही प्रकृति है। हमें वैसा ज़्यादा झमेला नहीं होता। इसलिए हमें दखंलादाज़ी नहीं होती।
प्रश्नकर्ता : वहाँ पर क्या करना चाहिए?
दादाश्री : नहीं, कुछ भी नहीं करना है। वहाँ पर बस जो कुछ उल्टा-सीधा हो जाता है, उसके प्रतिक्रमण करते रहना है। यह पूरा मार्ग प्रतिक्रमण का ही है। शूट ऑन साइट का मार्ग है। यदि शूट ऑन साइट चलता रहे तभी आप इसे काबू कर सकोगे, नहीं तो काबू नहीं कर पाओगे!
दबाव से नहीं, समझ से बंद जितना माल भरा है, उतना माल तो उसी को शुद्ध करना है! प्रश्नकर्ता : कितना माल है, वह तो मैं कैसे कह सकता हूँ?
दादाश्री : वह तो कहा जा सकता है न! प्रकृति के विचार आते हैं सारे, सुगंध आती हैं, सबकुछ आता है। उसके एविडेन्स खड़े होते हैं न, कमिंग इवेन्टस कास्ट दियर शेडोज़ बिफोर। यह ज़ोर-ज़बरदस्ती से प्रकृति पर दवाब डालने का मार्ग ही नहीं है न! अहंकार होगा तभी इंसान दबाव डाल सकता है न! और फिर दबाव तो कहीं रहता होगा? न जाने कब छटक कर निकल जाए!
प्रश्नकर्ता : प्रकृति पर दबाव नहीं डालना है तो क्या उसे नाचने देना
है?
दादाश्री : नाचने तो देना ही नहीं है लेकिन दबाव नहीं डालना है! उसे कुंद कर देना है, किसी चीज़ में कोई सार या गुण नहीं है अगर ऐसा समझ में आ जाए न, तो वृत्तियाँ बंद हो जाती हैं। अपने आप ही बंद हो जाती हैं। अगर उसे ऐसा पक्का समझ में आ जाए कि सार और गुणवत्ता नहीं है, बल्कि नुकसानदायक है, तो वृत्तियाँ बंद हो जाएँगी। समझाकर देखना।
डिस्चार्ज प्रकृति में न लो आनंद मिठास का किसी भी प्रवृत्ति की प्रकृति जो बन ही चुकी है, तो जब तक वह