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[१.७] प्रकृति को ऐसे करो साफ...
अभिप्राय रखता है, लेकिन हमें अभिप्राय रहित बनना है। उसका भरा हुआ माल निकल रहा है ।
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बिफरी प्रकृति के सामने
प्रकृति के धक्के की वजह से कोई व्यक्ति किसी पर उग्र हो जाता है, लेकिन तुरंत ही उसके बाद खुद किसमें होता है ? 'ऐसा नहीं होना चाहिए' उस भाव में है और जगत् के लोग, जो हो जाता है, उसी भाव में रहते हैं। अर्थात् दोनों में बहुत फर्क है । आपका तो सब काम सहमति से चलता है न?
प्रश्नकर्ता : ऐसा होता है । लेकिन फिर आज का अभिप्राय उससे अलग पड़ जाता है
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दादाश्री : फिर कितने टाइम में? जागृति तो तुरंत घंटे-दो घंटे में आ जानी चाहिए! लेकिन माल ऐसा कचरा भरा हुआ है कि... तो कितनी ही बातों में पता ही नहीं चलता । तुझे नहीं लगता ऐसा? कितने घंटों में वह खयाल आना चाहिए कि यह गलत है? दो घंटों में, चार घंटों में या बारह घंटों में, लेकिन खयाल आना चाहिए कि यह गलत हो गया। अभी भी कितनी ही चीज़ों के बारे में हो जाता है लेकिन आपको पता नहीं चलता । मुझे पता चल जाता है कि ये टेढ़े चले। हमें पता चल जाता है या नहीं? फिर भी हम चलने देते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि यह अभी रास्ते पर आ जाएगा।
है?
जो प्रकृति के सामने जागृत, वह ज्ञानी
प्रश्नकर्ता : यह, जागृति रहे, उसके लिए प्रकृति कितनी हेल्प करती
दादाश्री : वह, आत्मा हेल्प करता है ।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् प्रकृति जब उपशम भाव में होती है, तब जागृति में हेल्प करती है। क्या ऐसा है ?