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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
नहीं छूट रहा है। तब फिर हम उसे टोक देते हैं ! कैसे भी समझाकर पाँचपच्चीस हज़ार रूपये दिलवा देते हैं न किसी जगह पर!
प्रश्नकर्ता : प्रकृति का छेदन करने के सभी उपाय, क्या पुरुषार्थ विभाग में आते हैं?
दादाश्री : हाँ, वही न। यों कैसे भी करके समझा दिया कि चली गाड़ी! खुद की प्रकृति की भूलें दिख सकें, ऐसा नहीं हो पाता क्योंकि प्रकृति को प्रकृति की भूलें नहीं दिखाई देती, क्रोध-मान-माया-लोभ व अहंकार को और बुद्धि को खुद की भूलें दिखाई नहीं देतीं। खुद ही प्रकृति है न! इसलिए खुद की भूलें दिखाई नहीं देतीं। जो दिखाई देती हैं वे बहुत बड़ीबडी होती हैं, ज़बरदस्त! वे दिखाई देती हैं। उनके अलावा अनंत भूलें हैं। निरा भूल का भंडार है लेकिन दिखाई नहीं देतीं। यदि भूलें दिखाई देने लगें तो भगवान बन जाए।
ज्ञान मिलने के बाद भूलें किस माध्यम से दिखने लगती हैं? प्रज्ञाशक्ति से। आत्मा में से जो प्रज्ञाशक्ति प्रकट हुई है, उससे सभी भूलें दिखने लगती हैं और वे भूलें दिखाई देने लगती हैं इसलिए तुरंत अपना निबेड़ा ले आते हैं। हम कहते हैं कि 'भाई, प्रतिक्रमण करो।' प्रज्ञाशक्ति वह दाग़ दिखाती है तब हम कहते हैं कि 'इसे धो दो।' इस तरह सभी कपड़े धो देने हैं। सभी दागों के प्रतिक्रमण किए तो फिर साफ!
प्रश्नकर्ता : दादा, यह जो स्लेट मिटाकर साफ कर दी है, अब फिर से उस पर कोई चित्रण न हो, ऐसी शक्ति दीजिए।
दादाश्री : प्रकृति लिखती है और पुरुष मिटाता है। प्रकृति लिख देती है भूल से और पुरुष मिटा देता है। प्रकृति लिखे बगैर रहती नहीं है और पुरुष हुए हैं इसलिए पुरुषार्थ से पुरुष मिटा देते हैं। वीतरागों ने ऐसी खोज की है। क्योंकि प्रकृति में पुरुषार्थ नहीं है। पुरुष पुरुषार्थवाला
प्रकृति तो अभिप्राय रखेगी, सभी कुछ रखेगी लेकिन हमें अभिप्राय रहित बनना है। प्रकृति अर्थात् अपना भी यह जो चारित्र मोह है न, वह