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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन करेले हमेशा कड़वे ही निकलते हैं और यह जो आम होता है, वह खट्टा या मीठा निकलता है।
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दादाश्री : आम खट्टा हो तो भी लोग उसे गलत नहीं मानते, मीठा निकले तो भी गलत नहीं मानते, लेकिन अगर तीखा निकले तो ? 'फेंक देंगे' कहेंगे, ‘इसमें कुछ हो गया है, कुछ नई ही तरह का है ।' खट्टा निकले तो समझते हैं कि खट्टा है ।
प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन ये सब उसके गुणधर्म हैं। नीम कड़वा ही निकलता है। लेकिन इंसानों में ऐसा सब चेन्ज होता रहता है।
दादाश्री : इंसानों में भी ये सारी प्रकृतियों को पहचानना आ जाए न, तो फिर हम समझ जाएँगे कि 'यह नीम है, इसे छू सकते हैं । इसके नीचे बैठ सकते हैं लेकिन इसके पत्ते मुँह में नहीं डाल सकते।' क्या नीम के नीचे नहीं बैठते हैं लोग?
प्रश्नकर्ता : हाँ, बैठते हैं। ठंडक लेते हैं।
दादाश्री : अरे, उसके पत्ते लेकर ऐसे-ऐसे भी करते हैं। ऐसे सूँघते हैं लेकिन मुँह में नहीं डालते । जानते हैं कि कड़वा ही है, जन्म से ही कड़वा है । मनुष्य की प्रकृति ऐसी नहीं है । कई बार जो प्रकृति कड़वी होती है न, वह कुछ उम्र बीतने पर मीठी हो जाती है।
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प्रश्नकर्ता : बदल जाती है?
दादाश्री : क्योंकि मनुष्य बदलता हुआ है। एवर चेन्जिंग है। और इन लोगों(पेड़-पौधों) में जो चेन्ज है वह सिर्फ एक जन्म में फल देने के लिए ही है। जबकि हम (मनुष्य) तो फल भी देते हैं और कर्म बंधन भी करते हैं। इसलिए हम ऐसा नहीं कह सकते कि यह हमेशा के लिए चोर
है।
प्रश्नकर्ता : नीम हमेशा ही कड़वा रहेगा, क्या ऐसा कह सकते हैं? दादाश्री : हाँ।