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[१.६] क्या प्रकृति पर प्रभुत्व प्राप्त किया जा सकता है?
निग्रह किम् करिष्यति ?
प्रकृति का कुछ भाग चेन्जेबल है और कुछ भाग चेन्जेबल है ही
नहीं ।
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प्रश्नकर्ता : कौन सा भाग चेन्जेबल है और जो चेन्जेबल नहीं है वह कौन सा भाग है ?
दादाश्री : काफी कुछ भाग चेन्जेबल है ही नहीं। वह तो कुछ ही भाग चेन्जेबल है और जो चेन्जेबल दिखाई देता है, वह प्रकृति चेन्ज नहीं होती, चेन्ज होती हुई दिखती है हमें । वास्तव में तो अंदर वह चेन्ज सहित ही है यह। वह भी प्रकृति है एक प्रकार की । लेकिन लोग क्या कहते हैं कि इससे मेरा चेन्ज हो गया। ऐसा दिखाई देता है उसे । लेकिन वह चेन्ज नहीं होता। अंदर चेन्ज सहित ही है यह! यह तो बहुत समझने जैसा है । बहुत गहरा है यह अक्रम विज्ञान !
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प्रश्नकर्ता : यह ज्ञान लेने के बाद प्रकृति चेन्ज होती है?
दादाश्री : ज्ञान लेने से पहले भी नहीं होती है और बाद में भी नहीं होती। ज्ञान के बाद अगर कुछ होती होगी तो कितनी होती है? लेकिन वह तो पहले से ही हो चुकी थी इसलिए चेन्ज होती है । प्रकृति कहीं नई नहीं बनती।
प्रश्नकर्ता: प्रकृति बदली नहीं जा सकती, तो फिर प्रतिकूल प्रकृति या अनुकूल प्रकृति के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए?
दादाश्री : उसे देखना ही है । आप कहो कि, 'ज़्यादा क्यों खा रहे हो ये सब? क्यों इतनी खटाई खा रहे हो?' प्रकृति खा रही होती है, तब आप अलग हो और प्रकृति अलग है। यू आर नोट रिस्पोन्सिबल और अगर बंद करने जाओगे तो उससे रिस्पोन्सिबिलिटी आएगी । कृष्ण भगवान ने कहा है न कि ‘निग्रह किम् करिष्यति ? ' तू कैसे रोक पाएगा? प्रकृति का निग्रह किस तरह कर सकेगा? प्रकृति डिस्चार्ज चीज़ है । मैंने तो ऐसा सिद्धांत लिखकर दिया है कि कुछ पढ़ना ही ना पड़े !