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[१.४] प्रकृति को निर्दोष देखो
गुनाह क्या था? कि सभी को दोषित देखा और इन चंदूभाई (फाइल नं - १) का दोष नहीं देखा। उस गुनाह का रिएक्शन आया है यह। अतः गुनहगार पकड़ा गया। अन्य कोई गुनहगार है ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : सब उल्टा देखा है।
दादाश्री : उल्टा ही देखा है, अब सीधा देखा है। बात को सिर्फ समझना ही है। कुछ करना नहीं है। वीतरागों की बात को सिर्फ समझना ही होता हैं, करना कुछ नहीं होता। वीतराग कितने समझदार थे! यदि करना हो तो इंसान थक जाए बेचारा!
प्रश्नकर्ता : और यदि करेगा तो वापस बंधन आएगा न?
दादाश्री : हाँ! करना, वही बंधन है। कुछ भी करना, वह बंधन है। माला फेरी, तो भी बंधन है लेकिन वह सब के लिए नहीं। बाहर के लोगों के लिए कह सकते हैं कि माला फेरना क्योंकि उनका व्यापार बंधनवाला
है।