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[१.३] प्रकृति जैसे बनी है उसी अनुसार खुलती है
है? वह अपने मिज़ाज में इतनी अच्छी तरह से चलेगी, बिल्कुल सही चलेगी।
प्रश्नकर्ता : हाँ, और आत्मा को हेन्डल मारना चाहिए?
दादाश्री : हाँ, आत्मा को हेन्डल मारना चाहिए और पुद्गल को ब्रेक नहीं लगाना चाहिए। कई लोग पुद्गल को ब्रेक लगाते हैं। व्यवस्थित ही है न! तो फिर भाई, ब्रेक लग जाएगा उससे तो! हो जाने के बाद व्यवस्थित कहना है। तब तक गाड़ी को चलने ही दो अपने आप और पुद्गल को तो चलने ही दो जहाँ जाए वहाँ। जैसे भी जा रहा है, ब्रेक मत लगाओ क्योंकि सिर्फ उसे देखते रहना है। लगाने से ब्रेक लगेगा नहीं और टकरा जाएगा बल्कि, टकराव है यह।
ब्रेक लगने से टकरा जाएगा, बस इतना ही है। उसमें और कोई बदलाव नहीं हो सकेगा और आत्मा को हेन्डल मारना अर्थात् उपयोग, जागृति रखो ज़रा, धीमा हुआ कि जागृत हुआ, धीमा हुआ और जागृत हुआ।
प्रश्नकर्ता : सब ऐसा कहते हैं कि डिसिप्लिन होना चाहिए। इस तरह से डिसिप्लिन का ब्रेक लगाना चाहिए, उसका क्या?
दादाश्री : अपने महात्माओं के लिए तो हमने पाँच आज्ञा ही दी हुई हैं। महात्माओं के लिए इसमें से कुछ भी है ही नहीं। यह सब जो कहा है न, वह बाहर के लोगों के लिए सिखाया है।
प्रश्नकर्ता : अपने महात्मा ऐसा कहते हैं कि डिसिप्लिन होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए।
दादाश्री : वे तो बोलेंगे अब। वह तो उनके पास जो माल भरा हुआ होगा, वह बोल रहा है और उसने भी डिसिप्लिन नहीं रखा हो तो वह वैसा बोलता है। उसका प्रश्न नहीं है। कैसा माल भरा है, उसका हमें क्या पता चले? तरह-तरह के माल भरकर लाए हैं और भरा हुआ माल निकलता रहता है। अगर इन पाँच आज्ञा का पालन कर रहा है, तो हमारी और कोई शर्त है ही नहीं। उसे जहाँ ठीक लगे वहाँ घूमे न! और जो खाना हो वह