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अनुक्रमणिका
[१.१] प्रकृति किस तरह बनती है? प्रकृति का सूक्ष्म साइन्स १ प्रकृति का कर्ता कौन? 'ज्ञान', स्वभाव में, विभाव में ३ फर्क, प्रकृति और कुदरत में ८ निबेड़े की रीति अनोखी ५ संबंध, प्रकृति और आत्मा का ९ प्रकृति जड़ है या चेतन?
[१.२] प्रकृति, वह है परिणाम स्वरूप से क्या प्रकृति और प्राण साथ... १० प्रकृति को नहीं बदलना है.. १८ प्रकृति नचाए वैसे नाचता है ११ पुरुषार्थ किस आधार पर होता है? १९ प्रकृति बरबस करवाती है...... १३ कारण-कार्य स्वरूप प्रकृति का २० संबंध, स्वसत्ता और प्राकृत सत्ता.. १५ इसमें राग-द्वेष किसे हैं? २१ छूटते समय प्रकृति स्वतंत्र १६ प्रकृति, अहंकार के ताबे में या... २२ दोनों बरतें निज स्वभाव में १७ प्रकृति, जैसे सुलगाया हुआ बारूद २३ प्रकृति की स्वतंत्रता और परतंत्रता १७
[१.३] प्रकृति जैसे बनी है उसी अनुसार खुलती है आसक्ति है प्रकृति को २५ जागृति लाती है प्रकृति को... २८ खपे प्रकृति किससे? २६ प्रकृति के सामने जागृति ३० नहीं बदलती प्रकृति की स्टाइल २७
[१.४] प्रकृति को निर्दोष देखो इसमें दोषित कौन?
३३ प्रकृति को ऐसे मोड़ते हैं... ३७ प्रकृति किस तरह बदली जा... ३३ शुद्धात्मा देखने से बाघ भी... ३९ होता है, प्रकृति के अनुसार ३४ ज्ञानी की दृष्टि की निर्दोषता ४१ जितने विकल्प उतने ही स्तर... ३५ दोषित जानो लेकिन मानो मत ४३ बिफरी हुई प्रकृति के सहज... ३६ पकड़ा गया असल गुनहगार ४४ आखिर तो दोनों ही हैं वीतराग ३६
[१.५ ] कैसे-कैसे प्रकृति स्वभाव एक ही वाक्य से मोक्षमार्ग ४६ मालिकीपने के बिना सहजता से... ५२ इससे जन्म लेते हैं प्राकृत गुण ४७ प्रकृति श्रेष्ठ इलाज करती है देह.. ५५ प्राकृत गुणों की मूल उत्पत्ति ५० कर्म उपद्रवी और प्रकृति... ५७ प्रकृति की पूरी-पूरी पहचान ५१ ।।
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