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[१.१] प्रकृति किस तरह बनती है?
तक वायु, तेज़, आकाश अलग होते हैं तब तक वे कुदरत कहलाते हैं और वे सब इकट्ठे हो जाएँ और यह शरीर बन जाए तो वह प्रकृति कहलाती है। प्रकृति में करनेवाला की ज़रूरत है और कुदरत में कोई करनेवाला नहीं है। कुदरत, वही कुदरती रचना है।
संबंध, प्रकृति और आत्मा का प्रश्नकर्ता : प्रकृति के साथ आत्मा का क्या संबंध है?
दादाश्री : प्रकृति और आत्मा के बीच कोई संबंध नहीं है, लेकिन आत्मा की हाज़िरी से प्रकृति बनती रहती है। ऐसे संयोग मिल आते हैं कि उसकी हाज़िरी से प्रकृति बन ही जाती है अब अगर ज्ञानीपुरुष संयोगों को अलग कर दें, तो उसके बाद कुछ भी नहीं होगा। अतः इस भ्रांति से आगे जाना पड़ेगा, पुरुष बनना पड़ेगा। यह प्रकृति भ्रांतिवाली है।
आप इसे चंदूभाई मानते हो, वही चार्ज करता है और फिर चंदूभाई ही बंधन में आया है। यह ज्ञान मिल जाए, स्वरूप का भान हो जाए, तब फिर 'आपका' चार्ज करना बंद हो जाएगा। उसके बाद सिर्फ डिस्चार्ज रहता है। वह डिस्चार्ज तो बंद किया नहीं जा सकता। इफेक्टिव है, तो उस इफेक्ट को तो कोई बंद नहीं कर सकता। शायद कभी नए सिरे से खाना बंद कर दे, लेकिन जो खा लिया है, उसका क्या होगा? क्या संडास गए बगैर चलेगा? अतः जिन्हें यह 'ज्ञान' दिया है, उन सब का चार्ज बंद हो गया
प्रश्नकर्ता : ज्ञान मिलने के बाद प्रकृति जो कि विशेष भाव से बनी है, तो उससे आत्मा को अलग नहीं रखा जा सकता?
दादाश्री : अलग ही है और अलग ही रहता है। मुझे दिखता है न! है अलग लेकिन अभी तक आपकी जो पहले की मान्यता चिपकी हुई है न, वह मान्यता छूटती नहीं है। आदत पड़ गई है न! वह धीरे-धीरे छूट जाएगी, बाकी है ही अलग। आप में अलग ही रहता है।