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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
कारण-कार्य स्वरूप प्रकृति का
प्रश्नकर्ता : कुछ प्रकार की प्रकृति तो हम जन्म से लेकर आए होते हैं, जन्म से ही कुछ प्रकृति लेकर आए होते हैं न?
दादाश्री : प्रकृति लेकर ही आए हैं । आत्मा प्रकृति के साथ है, बस इतना ही है। बाकी प्रकृति लेकर आए हैं। लानेवाली प्रकृति है और ले जानेवाली भी प्रकृति है और प्रकृति ही है यह सब । प्रकृति कब बनी? पिछले जन्म में कारण प्रकृति बनी थी, वही इस जन्म में कारण प्रकृति में से कार्य प्रकृति बन जाती है। कार्य प्रकृति अर्थात् फल देनेवाली प्रकृति और कारण प्रकृति अर्थात् जो अभी तक फल देने के लिए सम्मुख नहीं हुई है। अब इस कार्य प्रकृति में से वापस से कारण प्रकृति उत्पन्न होती है। अहंकार टेढ़ा है इसलिए कारण प्रकृति उत्पन्न करता ही रहता है।
प्रश्नकर्ता : उसका जन्म हुआ, उसी घड़ी से वह आंतरिक प्रकृति लेकर आता है और फिर बाह्य प्रकृति यहाँ पर जन्म लेने के बाद उसके उदय में आती है?
दादाश्री : हाँ, आंतरिक प्रकृति लेकर आता है, वही बाह्य प्रकृति को उत्पन्न करती है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, बाह्य प्रकृति का निर्माण और आंतरिक प्रकृति का जो लेकर आए हैं, क्या उन दोनों में कोई संबंध है?
दादाश्री : इतनी यदि खोज करना आ जाए न तो मेरे जैसा ज्ञानी बन जाए।
अंदर की प्रकृति है, तभी तो बाहर यह सब मिलता है, वर्ना मिलता ही नहीं । नहीं तो ऐसा कोई नियम नहीं है कि बाहरवाला हमें मिल जाए । यह बहुत सूक्ष्म बात है ।
प्रश्नकर्ता : नए कर्म जो बनते हैं, वे बाह्य प्रकृति की वजह से ही बनते हैं?