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[१.३] प्रकृति जैसे बनी है उसी अनुसार खुलती है
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में लेकर आया है। जन्म के समय तो वह परमाणु के रूप में होता है, और रूपक में सेटअप यहाँ आने पर होता है।
नहीं बदलती प्रकृति की स्टाइल प्रश्नकर्ता : हमारा प्रकृति का जो स्वभाव है, वह किस तरह से हल्का पड़ सकता है? क्योंकि इस प्रकृति का ऐसा है कि खुद को पता चलता है कि यह बंधन है। उदाहरण के तौर पर, किसी को मिर्ची खाने की आदत हो या फिर किसी को मीठा खाने की आदत होती है, जिस की वजह से नियम में नहीं रहा जा सकता।
दादाश्री : नियम से बाहर गई हुई हो या नियमवाली हो, लेकिन प्रकृति फल देती है। भले ही नियम से बाहर गई हुई हो, लेकिन डिस्चार्ज है न सबकुछ। अतः ऐसा नहीं रहना चाहिए या रहना चाहिए, वैसा नहीं है। जैसी है वैसी दिखाई देती है। प्रकृति में जैसा स्वभाव है वैसे ही स्वभाव का वह प्रदर्शन करती रहती है, निरंतर। डिस्चार्ज अर्थात् क्या? प्रकृति खुद के स्वभाव का प्रदर्शन करती रहती है।
जो चार्ज हो चुका है, वह डिस्चार्ज होता रहता है। यह देह इस तरह से चार्ज हो चुकी है इसलिए चलते समय ऐसे-ऐसे चलता है
और अस्सी साल का होने पर भी वैसे ही चलता है। तरीका (स्टाइल) नहीं बदलता। उस पर से हम पहचान जाते हैं कि वह व्यक्ति जा रहा है! और ये तीन चार्ज हो चकी बैटरियाँ, इनमें बदलाव नहीं हो सकता। इनमें बदलाव अगले जन्म में होता है। वहाँ पर यह सांसारिक ज्ञान काम में आता है, अपना ज्ञान नहीं। उस अनुसार बदलाव हो जाता है।
प्रकृति नियमवाली है। नियम के बिना तो कोई चीज़ है ही नहीं। नियमवाला जगत् है। सिर्फ यह इगोइज़म ही टेढ़ा है। इगो ही टेढ़ा है, बाकी पूरी ही नियमवाली है। यह इगो, नियमवाली को अनियमवाली कर देता है। कहेगा, 'मुझे चाय गरम ही चाहिए' और फिर लोगों के साथ बातें करता रहता है और चाय ठंडी हो जाती है। अरे भाई, जल्दी से पी ले ना चुपचाप!