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उसी प्रकार से आत्मा में पूरा जगत् झलकता (प्रतिबिम्बित होता) है! वह बीच का उपयोग प्रज्ञा का है। प्रज्ञा के उपयोग में आ जाए तो आगे अन्य किसी की ज़रूरत नहीं रही।
अंदर विचार आए, गुस्सा आए तो उसका पता चलता है न? वह प्रज्ञा को पहुँचता है। वह अंतरिम ज्ञान है, वह मूल ज्ञान नहीं है। मूल तक बाद में पहुँचेगा। मूल तक पहुँचने का साधन क्या है? दादाश्री की पाँच
आज्ञा!
पहले इन्द्रिय ज्ञान से दिखाई देता है, फिर बुद्धि से दिखाई देता है, फिर प्रज्ञा से दिखाई देता है,
और अंत में आत्मा से दिखाई देता है। केवलज्ञान होने तक प्रज्ञा ही काम करती है। फिर वह खत्म!
इन पेड़-पौधों को देखने और जानने की पावर चेतन की क्रिया हुई और आत्मा के प्रकाश में सभी ज्ञेय झलकते हैं, तो उनमें क्या फर्क है? आत्मा के प्रकाश में ज्ञेय झलकते हैं अतः वहाँ पर फिर देखना-जानना शब्द है ही नहीं।
'केवलज्ञान होना,' इसका अर्थ क्या है? तमाम बादल हट गए तो फिर पूरा दिखाई देता है!
आत्मा स्व को जानता है और पर को भी जानता है! जाननेवाला कौन है? स्व कौन है? सभी कुछ जानता है!
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