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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
दादाश्री : प्रकृति में चेतन बिल्कुल है ही नहीं और जो चेतन है वह पावर चेतन है।
प्रश्नकर्ता : इस प्रकृति में सिर्फ पावर चेतन ही है? तो इसमें जड़ विभाग बिल्कुल भी नहीं है?
दादाश्री : प्रकृति जड़ ही है न! उस जड़ में पावर आ गया है।
प्रश्नकर्ता : अब यह बताया है कि यह प्रकृति जो जड़ है, उसमें इस चेतन के सानिध्य से गति होती है?
दादाश्री : हाँ, जैसे ही सूर्यनारायण हाज़िर होते हैं, वैसे ही अपने यहाँ लोगों में चंचलता बढ़ती जाती है और सूर्यनारायण की गैरहाज़िरी हुई कि चंचलता घटती जाती है। वह उनकी हाज़िरी से ही होता है। वे उन्हें कुछ नहीं कहते, ऑर्डर नहीं करते, कुछ भी नहीं। उसी प्रकार से आत्मा की हाज़िरी से, इस प्रकृति में पावर चेतन भर जाता है। पावर चेतन, मूल चेतन नहीं। पावर खत्म हो जाए तो गया। जब तक पावर रहता है, तब तक काम करती है।
मन-वचन-काया की ये तीन बैटरियाँ चार्ज होती हैं और फिर वे डिस्चार्ज हो जाती हैं और फिर से नई चार्ज होती हैं। अतः आत्मा की हाज़िरी से ही यह सब चार्ज होता रहता है। वास्तव में यह जड़ है लेकिन पावर चेतन है। इसे सिर्फ जड़ कह तो देते हैं, लेकिन जड़ अकेला कुछ भी नहीं करता, इसमें पावर चेतन भरा हुआ है। ये तीन बैटरियाँ फिर डिस्चार्ज होती रहती हैं, निरंतर। पावर भरी हुई बैटरियों का जो डिस्चार्ज होता है, उसे इफेक्ट कहते हैं।
अंदर प्याले में बरफ हो और उस प्याले को यहाँ पर रखें, तो बाहर पानी कहाँ से जमा हो जाता है? उस पर पानी बहने लगता है। बाहर पानी के दाग़ कहाँ से आ गए? यह बरफवाला प्याला है, जिस हवा ने इसे छुआ, उसमें मॉइस्चर (नमी) था, तो उससे पानी बन गया। वह हमें यों सीधी तरह से नहीं दिख सकता। बुद्धि से समझ में आता है। लेकिन लोग समझाते हैं कि ऐसा-ऐसा हो गया, तो समझ में आ जाता है उसे। लेकिन इन तत्वों