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रजकण के रिद्धि वैमानिक देवनी: सर्व मान्या पुद्गल एक स्वभाव जो, अपूर्व अवसर...
- श्रीमद् राजचंद्र (धूल हो या वैमानिक देव की सिद्धि, सभी को माना एक ही पुद्गल स्वभाव का। अपूर्व अवसर...)
[७] देखने-जाननेवाला और उसे जाननेवाला
आत्मा की अनंत शक्तियाँ हैं! सभी तरफ का देख सकता है! यह चर्म चक्षु तो सिर्फ आगे का ही देख सकते हैं और आत्मा तो दसों दिशाओं का, सभी कोने देख सकता है।
मिश्रचेतन भी देख और जान सकते हैं और मूल आत्मा भी देख और जान सकता है, दोनों में फर्क क्या है? मिश्रचेतन विनाशी को देख सकता है और मूल चेतन विनाशी और अविनाशी दोनों को देख और जान सकता है।
ज्ञानी को क्या सूर्य-चंद्र गिरे हुए दिखाई देते होंगे? आत्मा जो देखता है वह रियल दृष्टि है और आँखें जो देखती हैं वह रिलेटिव दृष्टि है। रियल वस्तु रियल को ही देखती है।
आत्मा खुद को जानता है और पर को भी जानता है!
कई बार बुद्धि आत्मा का स्वांग रचकर ज्ञाता-दृष्टा बन जाती है! वास्तविक ज्ञाता-दृष्टा तो बुद्धि से परे है। महात्मा बुद्धि से परे चले गए हैं इसीलिए तो हररोज़ खिंचकर सत्संग में आ सकते हैं! नहीं तो बुद्धि रोज़ सत्संग में आने ही न दे। वर्ना, काफी कुछ ज्ञाता-दृष्टापन बुद्धि का ही होता
'ऐसा लगता है' जब ऐसा हो, तब दृष्टा और जब जानता है तब आत्मा ज्ञाता के रूप में है! बुद्धि को जो देखता है, वह 'हम' खुद है।
यह बुद्धि का ज्ञाता-दृष्टापन है या आत्मा का, इसका डिमार्केशन क्या
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