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निकाल बाकी है अघाती कर्म... २६० अब रहा चारित्रमोह
२७१ तीर्थंकरों के द्रव्यकर्म २६१ रहा द्रव्यकर्म देह को
२७२ सभी तरफ से मेल खाने पर... २६२ तब होती है ज्ञानलब्धि
२७३ शुक्लध्यान से नष्ट होते हैं... २६६ दादा देते हैं संपूर्ण समाधान २७३ मूल में है मोहनीय
२६८
[२.११] भावकर्म द्रव्यकर्म की वजह से होते हैं... २७५ शुद्ध भाव सुधारे दोनों जन्म २८१ कषाय अर्थात् भावकर्म २७६ 'मैं शुद्धात्मा हूँ' तो खत्म हुआ.. २८२ फर्क भाव और भावकर्म में २७८ कर्ताभाव से भावकर्म २८३ अस्त होती हुई इच्छाएँ तो... २८०
[२.१२] द्रव्यकर्म + भावकर्म भावकर्म और द्रव्यकर्म के बीच..२८४ इलेट्रिकल बॉडी और कषाय २९४ आत्मा को अशुद्धि लगने का... २८५ जलती है मोमबत्ती और झरतौ... २९५ संयोगों के दबाव से बदल... २८७ द्रव्यकर्म के बीज में से फल... २९५ प्रेरणा पावर चेतन की २८८ द्रव्यबंध - भावबंध
२९८ भावकर्म है निज कल्पना २९० मात्र दृष्टि की ही भूल ३०० कल्पना के अनुसार बना पुद्गल २९१ लिंगदेह, वही भावकर्म है ३०२ ज्ञान से अकर्ता, अज्ञान से कर्ता २९२ वह श्रृखंला टूटेगी कब? अनुपचरित व्यवहार से कर्ता २९२ करुणा सहज सदा
३०४ [२.१३] नोकर्म यदि ज्ञान है तो बाधक नहीं... ३०७ अक्रम मार्ग में:क्रमिक मार्ग में नोकर्म, वे इन्द्रियगम्य हैं ३०९ नोकषाय की समझ
३१७ क्रियामात्र नोकर्म है ३१० प्रारब्ध ही नोकर्म हैं
३२० अकर्ता है इसलिए ३१२ नोकर्म अतः अकर्म
३२१ सभी चारित्रमोह हैं नोकर्म ३१४
[२.१४] द्रव्यकर्म + भावकर्म + नोकर्म त्रिकर्मों में खुद का कर्तापन... ३२३ विश्रसा, प्रयोगसा, मिश्रसा ३३२ भावकर्म के परिणाम स्वरूप... ३२४ उल्टी दृष्टि, इसीलिए भावकर्म ३३३ नहीं है भावकर्म स्वसत्ता में ३२४ जहाँ समता वहाँ चार्ज बंद ३३३ बदली मात्र 'दृष्टि' ही ३२५ अहंकार पहने चश्मा
३३४ द्रव्यकर्म दिखाई देते हैं... ३२६ दृष्टि बदली द्रव्यकर्म से ३३५ भावकर्म-नोकर्म के बीच ३२६ भावकर्म और मूल दृष्टि... ३३६
३०४
३१५
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