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मालिक न बनो तो कर्म छूट... ३२८ रखो लक्ष में चश्मे, खुद... ३३८ देह की सारी क्रियाएँ नोकर्म ३३० अर्पण किया जीवित और रहा... ३३९ भरा हुआ माल, वह... ३३१ विज्ञान से गया भावकर्म ३४१
[३.१] 'कुछ है' वह दर्शन, 'क्या है' वह ज्ञान दर्शन और ज्ञान बुद्धिगम्य... ३४३ अंत में तो यह सब एक ही ३४८ नहीं है फर्क इसमें कोई ३४६ निरंतर आत्मा की प्रतीति वही... ३४९ सोचकर देखा तो वह ज्ञेय है ३४६ जाना हुआ समझ में और... ३५० देखा और जाना, दोनों रिलेटिव ३४८
[३.२ ] दर्शन सामान्य भाव से, ज्ञान विशेष भाव से दर्शन और ज्ञान की विशेष... ३५२ समय लगता है डिसाइड होने... ३५८ सामान्य ज्ञान से वीतरागता ३५४ इसीलिए रुका है केवलज्ञान ३५९ मुकाम स्वदेश में ही ३५४ कितनी सूक्ष्म समझ तीर्थंकरों की ३६१
[४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक आत्मा का ज्ञाता-दृष्टा स्वभाव ३६३ गलन को 'देखते' रहो आत्मा की सिर्फ ज्ञानक्रिया.. ३६४ देखनेवाला चैतन्य पिंड... ज्ञानधारा और क्रियाधारा दोनों...३६५ ब्रह्मांड के अंदर और बाहर?
४०२ सभी परिणाम झड़ जाते हैं... ३६८ ज्ञेय-ज्ञाता का संबंध
४०३ देखना स्वभाव है, चलना.. ३६९ निरंतर ज्ञाता-दृष्टा वही... 'देखने' में कुछ फर्क है? ३७१ ज्ञाता-दृष्टा को नहीं है कोई... ४०४ एक्ज़ेक्ट समझ ज्ञाता-दृष्टा.. ३७२ आत्मा को नहीं है ज़रूरत.... ४०५ ज्ञाता नहीं इन्द्रियगम्य रे ३७३ जो ज्ञाता-दृष्टा रहा, वही... ४०७ जो जानता है वह करता नहीं.. ३७८ अंत:करण को जाने और देखे... ४०८ साक्षी के रूप में कौन? ३८१ विनाशी जग के साथ आत्म.. ४०९ तब बनता है आत्मा ज्ञाता ३८२ ऐसे रहता है ज्ञाता-दृष्टा का.. ४०९ ज्ञेय के प्रकार हैं दो
३८३ देखो तरंगों को फिल्म की तरह ४१० रियल, ज्ञेय या ज्ञाता? ३८५ स्व को स्व जाने वह महामुक्त ४१२ जाननेवाला निर्दोष है सदा ३८८ दृश्य और दृष्टा, दोनों सदा भिन्न ४१३ अंश में से सर्वांश ज्ञानीपद ३९० सिर्फ देखने और जाननेवाला... ४१५ महात्माओं का डिस्चार्ज... ३९१ ज्ञायक भाव, वही अंतिम भाव.. ४१६ विधि के समय दादा एकाकार ३९६ नहीं होता स्मृति का संग... ४१९ अवस्थाओं में अस्वस्थ, स्व में.. ३९७ ज्ञायक भाव से परिणतियाँ शुद्ध ४२२ देखने से चली जाती हैं सभी.. ३९९ निरंतर ज्ञायकता वही परमात्मा ४२२
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