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अहंकार रहित अद्भुत दशा! बुद्धि रहित अबुद्ध दशा है उनकी! वह सब देखने को मिलता है। दादाश्री का फोटो खींचने के लिए फोटोग्राफरों में होड़ मचती थी। बिल्कुल सहज दशा! और दूसरों को तो उस घड़ी अंदर ऐसा हए बिना रहता ही नहीं है न कि 'मेरा फोटो ले रहे हैं?' अतः वे असहज हुए बगैर रहते ही नहीं। अतः उनका फोटो बिगड़ जाता है।
जब तक दादाश्री साहजिकता में रहते हैं, तब तक उन्हें प्रतिक्रमण नहीं करने होते।
दादाश्री हमें सिखाते हैं कि 'सहज होना है', ऐसा भाव रखना है। हमें ध्येय कैसा रखना है कि दादा की सेवा करनी है, ऐसा सहज भाव रखना है। उसके बाद उस समय जो होता है उसे देखना है। दादाश्री की सेवा मिलना तो बहुत बड़ी चीज़ है न! बहुत बड़ा पुण्य हो तो मिलती है! दादा को तो यों छू भी नहीं सकते न! एक बार भी हाथ से छू लिया तो बहुत बड़ा पुण्य कहलाएगा।
सहज हो जाए तो अंदर पूर्ण विज्ञान अनावृत हो जाएगा। जब संपूर्ण व्यवस्थित समझ में आ जाए, तब संपूर्ण सहज हो जाता है। अब किसी भी चीज़ का इंतज़ार नहीं करना है। उसका तो अंत ही नहीं आएगा।
जितना व्यवस्थित समझ में आता जाता है, उतना केवलज्ञान अनावृत होता जाता है। उतना ही सहज होता जाता है।
वाणी कब सहज होती है? जब ऐसा लगे कि 'यह टेपरिकॉर्डर बोल रहा है' तब। जब वाणी मालिकी रहित हो जाए तब वह सहज हो जाती है। मन-वाणी और वर्तन सभी की सहजता आ जाती है।
सहजात्म स्वरूप, वह अंतिम पद है। सहजानंद अर्थात् प्रयत्न रहित आनंद!
अगर एक मिनट के लिए भी सहज हो गया तो वह भगवान पद में आ गया। इस अक्रम विज्ञान से महात्मा सहज हो गए हैं।
दादा भगवान कौन? इस ब्रह्मांड के ऊपरी । इसका क्या कारण है कि
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