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कोर्स है।' अगर कोई बहुत ही कच्चा हो तो ज़्यादा समय लगता है और बहुत पक्का हो तो उसे ग्यारह साल में ही हो जाता है! चौदह साल में सहज हो जाता है!
किसी को टोकना ही नहीं चाहिए और अगर टोक लें और वह न सुने तो हमें अपनी बात वापस ले लेनी चाहिए। भरा हुआ माल निकले और उसे हम देखते रहें, तो सहज हुआ जा सकता है।
__ आत्मा स्वयं मोक्ष स्वरूप है लेकिन ये पूर्वजन्म की पच्चरें डखोडखल करती हैं। अब उन अंतरायों को 'देखते' रहने से वे जाएँगे।
पुद्गल तो नियम में ही है। उसमें डखोडखल न की जाए न, तो वह शुद्ध ही होता रहेगा। लेकिन यह डखोडखल कौन करता है? अज्ञान मान्यताएँ। और फिर वांधा और वचका (आपत्ति उठाते हैं और बुरा लग जाता है)।
अपनी देह को कोई कुछ भी करे लेकिन राग-द्वेष नहीं होना चाहिए। कोई जेब काट ले या देह को किसी भी तरह से परेशान करे, लेकिन अगर उसे स्वीकार कर लिया जाए तो वह देहाध्यास है। 'मुझे ऐसा क्यों किया' तो वह देहाध्यास है और अगर इनका असर नहीं हो तो देहाध्यास गया! अपनी देह को कोई कुछ भी करे, तब भी हमें राग-द्वेष न हो, उसी को सहज कहते हैं।
___महात्मा ऐसे सहज कब हो पाएँगे? ज्ञान मिला है, इसीलिए वह परिणामित होने पर कर्म कम होते जाएँगे, तो सहज होता जाएगा। पहले एक-एक अंश करके सहज होता जाता है और अंत में संपूर्ण सहज हो जाता है। जितने अंशों तक सहज, उतने अंशों तक की समाधि!
चार डिश आइसक्रीम खिलाए, वह दखलंदाज़ी है और 'खाने जैसा नहीं है, गला बिगड़ जाएगा' तो वह भी दखलंदाजी! दखलंदाजी न करे तो अपने आप ही संतुलन रहेगा! ।
दखल को निकालना नहीं है, उससे अलग रहना है! अंदर प्रज्ञा दखल को चेतावनी देती है, इसके बावजूद भी अगर वह करता रहता है, और भगवान तो उदासीन! वीतराग!
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