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देहाध्यास छूटे तो व्यवहार आत्मा की डखोडखल (दखलंदाजी) बंद हो जाती है, अहंकार, ममता चले जाते हैं, इसीलिए तो! फिर देह, देह के स्वभाव में और आत्मा आत्मा के स्वभाव में रहता है, उसी को सहजता कहते हैं।
परम पूज्य दादाश्री डखोडखल करते थे लेकिन वह तो हमारी डखोडखल निकालने के लिए! हँसते हँसाते हमारी डखोडखल बंद कर देते
थे!
ज्ञान मिलने के बाद आसानी से निरंतर आत्मा का लक्ष (जागृति)रहता है। उसे सहज आत्मा होना कहते हैं। उसके बाद जैसे-जैसे दादा की आज्ञा में रहें, वैसे-वैसे मन-वचन-काया सहज होते जाते हैं।
___अहंकार गैरहाज़िर तो सहजभाव हाज़िर। यह सब बिगाड़नेवाला अहंकार ही है।
मूल आत्मा तो सहज है ही, लेकिन यह व्यवहार आत्मा सबकुछ बिगाड़ देता है। वह अगर सहज हो जाए तो देह तो सहज है ही।
सहज भाव से अगर धौल लगाई जाए तो भी सामनेवाले को दुःख नहीं होता! ज्ञानी के अलावा ऐसा कौन कर सकता है?
अक्रम मार्ग सहजता का मार्ग है, इसलिए इसमें 'नो लॉ लॉ' है, जो सहजता की तरफ ले जाता है। अगर लॉ हो तो सहजता कैसे आ पाएगी?
अंतिम स्थिति कौन सी है? आत्मा सहज स्थिति में और देह भी सहज स्थिति में।
दादाश्री की आज्ञा में जितना रहा जा सके उतना ही समाधि में रहा जा सकता है! हर रोज़ सुबह दादाश्री की पाँच आज्ञा में ही रहने की ही शक्तियाँ माँगनी हैं।
'डखोडखल नहीं करूँ ऐसी शक्तियाँ दीजिए,' ऐसा बोलने से काफी असर होता है।
दादाश्री कहते हैं, सामान्य तौर पर 'अक्रम विज्ञान में चौदह साल का
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