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जागृति ! क्या है', उसे देखता है और क्या हो रहा है', उसे देखता है। 'क्या है' में सभी में खुद का स्वरूप दिखाई देता है और अपने आप ही हो रहा है, ऐसा दिखाई देता है। तो हो गया काम पूरा।
करना कुछ भी नहीं है, मात्र देखना है। जो-जो भाव किए, निश्चय किए, उन सब को देखते रहना है। अपने में भाव करने की सत्ता है? नहीं। यह तो पिछले जन्म की डिज़ाइन बोल रही है, उसमें सत्ता क्या? उल्टा और सीधा, दोनों को ही देखते ही रहना है!
इस उलझन का कारण क्या है? उलझन में डालनेवाला अलग है, पड़नेवाला अलग है और जाननेवाला अलग है। जाननेवाला अगर पड़नेवाला न बने तो नहीं भुगतेगा और अगर पड़नेवाला बन जाए तो भुगतेगा!
ज्ञान मिलने के बाद डिस्चार्ज को फास्ट करने के लिए क्या किया जा सकता है? उसके बाद तो करनेवाला रहा ही नहीं न? अतः 'देखते' रहो आप। जो पूरण किया हुआ है, कड़वे-मीठे फल देकर उसका गलन
होगा।
देखनेवाला कौन है? शुद्धात्मा जो कि चैतन्य पिंड है। ज्ञेय और ज्ञाता एकाकार न हों, उसे ज्ञान कहते हैं। तब सभी ज्ञेय खुद के ज्योति स्वरूप में झलकते हैं।
___ 'ब्रह्मांड के अंदर और ब्रह्मांड के बाहर से देखना,' इसका क्या मतलब है? ज्ञेयों में तन्मयाकार हो गया तो ब्रह्मांड के अंदर कहा जाएगा
और जब ज्ञेयों को ज्ञेय स्वरूप से देखे, तब ब्रह्मांड से बाहर कहलाएगा। मन के विचारों में तन्मयाकार हो गया तो उसे ब्रह्मांड के अंदर कहा जाता है और जुदा रहकर उन्हें देखे और तन्मयाकार न हो तो उसे ब्रह्मांड से बाहर कहा जाएगा। जो खुद के स्वरूप में ही रहा, उसे 'ब्रह्मांड से बाहर' रहा कहा जाएगा।
महात्मा को कई बार ऐसा आभास होता है कि ज्ञाता-दृष्टा भाव चला गया है, लेकिन ऐसा नहीं होता। अगर डोजिंग हो जाए तो क्या उससे लाइट
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