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अनेकान्त
अपेक्षित थी। सामाजिक व्यापारिक, धार्मिक और राज- मेरी तो ऐसी मान्यता है। नैतिक सभी क्षेत्रों में उनकी प्रतिष्ठा थी। उनकी निस्पृह उनका जीवन सादा तथा पवित्र था। समाज-सेवा सेवावति और कठोर साधना से सभी प्रभावित थे। की अमिट भावनाएँ और अटूट लग्न भापकी रग-रग में भारत के विभिन्न भागों से जो भी भाई कलकत्ता पहुँचते
कलकत्ता पहुचत समाई थी। पाप बड़े ही धार्मिक, परोपकारी, उदार थे, बा. जी उन्हें सरक्षक, सहायक मौर परामर्शदाता के
और महत्वाकांक्षी थे। पाप नाम की चाह और नेतागिरी रूप में सदैव सहायता देते थे। उनका जीवन पारिवारिक
से कोसों दूर रहते थे। वे आज की तरह उपाधिधारी न पोषण की मंकीर्ण विचारधारामों से परे सार्वजनिक
नक होते हुए भी हिन्दी, बगला, अंग्रेजी, संस्कृत आदि अनेक जीवन था । प्रत. उन्हें सर्वहितैषी दीनबन्धु और प्रजात
भाषामो के ज्ञाता थे। वे बड़े ही जागरूक थे, माथ ही शत्रु कहना अतिशयोक्ति न होगी। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के
कर्तव्य विमुख और प्रमादी व्यक्तियो के लिए वे कठोर वे परम पोषक थे। उनका कार्यक्रम 'कार्यम् वा साधयेयम्,
शामक भी थे। यदि आज हम उनके मानव साफल्योपयोगी शरीरम् वा पातयेयम्' के सिद्धान्तानुकूल ही संचालित
गुणों से सीखने और अनुकरण करने का प्रयत्न करे, तभी होता था।
हम उन्हें अपनी सच्ची श्रद्धांजलि समर्पित करने के अधिबा० जी ने धर्मोन्नति, शिक्षा-प्रचार, पुरातत्वानुवेषण कारी बन सकेगे। हम उनकी स्वर्गीय पात्मा को शान्ति तीर्थ रक्षा प्रादि कार्यो मे जो भी योगदान दिया, वह तभी पहुँचा सकेंगे। समाज के ऐसे मूक सेवक के प्रति समाज के भावी इतिहास में स्वर्णाक्षरो में लिखे जाने श्रद्धा, भक्ति और विश्वास की त्रिवेणी मे गोता लगाने पर योग्य है । बाबजी, बाजी नही, समाज के बापूजी थे। ही हम उनके पाशीर्वाद और प्रेरणा के पात्र बन सकेगे।
पुरानी यादें
डा० गोकुलचन्द्र जैन (बा. छोटेलाल जी से मैं पहली बार १९६० मे जीवन भर उसने तन, मन और धन से धर्म, समाज और मिला था और तब लिखा था यह सस्मरण जो नये शीर्षक देश की मेवा की है । और आज अस्वस्थ अवस्था मे भी मे प्राज भी उतना ही नया है।
उसके मन मे वही लगन है, वही उत्साह है। भगवान
-लेखक) उसे चिरायु रखे। यू हैव नाट डन फुल जस्टिम् विथ जैनिज्म ।। __लोग उसे बा० छोटेलाल जी कलकत्ता वालों के नाम
एक नवयुवक ने प्रसिद्ध जर्मन स्कालर विन्टरनित्ज से जानते है । पिछले ७ अगस्त (१९६०) को पहली बार से कहा । स्कालर तिलमिला उठा नवयुवक के इस माक्षेर उनसे मेरी भेट हुई। दो दिन तक साथ-साथ रहने से से । पर दूसरे दिन नवयुवक ने जब सैकडों जैन प्रथ अनेक महत्वपूर्ण विषयो पर उनसे बातचीत हुई। उसी विन्टरनिरज के सामने लाकर रख दिये तो उसका स्कालर प्रसग मे उन्होने विन्टर निस्ज की भारत यात्रा से लेकर शान्त पड गया । शायद वह सोच रहा था-दि यंग मैन माज तक के जीवन की अनेक घटनाएँ सुनायी। वाज राइट।
जब विन्टरनिरज भारत प्राये बात बहुत पुरानी है। पाज वह नवयुवक अपने जब विन्टरनित्ज भारत यात्रा के प्रसंग में कलकत्ता जीवन के महानतम ७० वर्ष व्यतीत कर चुका । सारे पाए थे तब मैंने अपने यहाँ उनका निमन्त्रण किया था।