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मध्य भारत का
पुरातत्व
था, जिसमें अनेक वाटिकाएँ बनी हुई थीं। इस मन्दिर है:-"सं०-१०८५ धीमान् प्राचार्य पुत्र श्रीठाकुर देवकद्वार पर दाहिनी भोर के उक्त शिलालेख के ऊपर बाई धर सुत श्री शिव श्रीचन्द्रपदेवाः श्रीशान्तिनाथस्य प्रतिमा मोर एक चौतीसा' यंत्र उत्कीर्णित है, जो गृहस्थोपयोगी कारितेति ।" . है, जब किसी गर्भवती स्त्री को प्रसव वेदना हो, तो इस खजराहोकी खण्डित मूर्तियों में से कुछ लेख निम्न यंत्र को केसर से कांसे की थाली में लिखकर शुद्ध पानी प्रकार है:-'सं. ११४२ श्री प्रादिनाथाय प्रतिष्ठाकारक में घोलकर पिला देने से प्रसव शीघ्र हो जाता है। इसी श्रेष्ठी बीवनशाह भार्या सेठानी पपावती।' तरह बालकों के पेट-दर्द में भी उपयोग किया जाता है । इसके ऊपर देवचन्द्र शिष्य कुमुदचना अंकित है। . .
___चौथे न० को वेदी में कृष्ण पाषाण की हथेली पौर
नासिका से खण्डित जैनियों के बीसवें तीर्थकर मुनि शान्तिनाथ का मन्दिर-इस मन्दिर में एक विशाल
सुव्रतनाथ की एक मूर्ति है। उसके लेख से मालूम होता, मूर्ति जैनियों के १६वें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाय की
है कि यह मूर्ति विक्रम की १३वीं शताब्दी के प्रारम्भ में है, जो १४ फुट ऊंची है । यह मूर्ति शान्ति का प्रतीक है,
प्रतिष्ठित हुई है । लेख में मूल संघ देशीयगण के पंडित इसकी कला देखते ही बनती है। मूर्ति सांगोपांग अपने
नागनन्दी के शिष्य पं० भानुकीर्ति और मायिका मेरुश्री दिव्य प्रशान्त रूप में स्थित है और ऐसी ज्ञात होती है
द्वारा प्रतिष्ठित कराये जाने का उल्लेख किया गया है, कि शिल्पी ने अभी ही बनाकर तैयार की हो । मूर्ति
वह लेख इस प्रकार है.-'सं० १२१५ माष सुदी ५ कितनी चित्ताकर्षक है यह लेखनी से परे की बात है। शिल्पी को बारीक छनी से मूर्ति का निखरा हुमा वह
रवी देशोयगणे पंडित नाह (ग) नन्दी तच्छिष्य, पंडित
श्री भानुकीर्ति माविका मेरु श्री प्रति नन्दतुः ।" इस तरह कलात्मक रूप दर्शक को आश्चर्य मे डाल देता है. और वह
खजुराहो स्थापत्यकला की दृष्टि से अत्यन्त दर्शनीय है। उसे अपनी ओर आकृष्ट करता हुआ देखने का बार-बार उत्कण्ठा उत्पन्न कर रहा है। मूर्ति के प्रगल बगल मैं महोबा-इसका प्राचीन नाम काकपुर, पाटमपुर, अनेक सुन्दर मूर्तियाँ विराजित हैं जिनकी संख्या अनु और महोत्सव या महोत्सवपुर था। इस राज्य का सस्थान मानत. २५ से कम नहीं जान पड़ती। यहां सहस्त्रों पक चदेल वंशी राजा चन्द्रवर्मा था जो सभवतः सन् मूर्तियां खण्डित हैं, सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण बहुत ८०० मे हुमा है। इस राज्य के दो राजामों के नाम बारीकी के साथ किया गया है। भगवान शान्तिनाथ की खब प्रसिद्ध रहे हैं। उनका नाम कीतिवर्मा और मदन इस मूर्ति के नीचे निम्न लेख अकित है, जिससे स्पष्ट है कि वर्मा था, ई. सन् ९०० के लगभग राजधानी खजुराहो यह मूर्ति विक्रम की ११वीं शताब्दी के अन्तिम चरण की से महोबा में स्थापित हो गई थी। कनिंघम ने अपनी १. प्रो (IIX) मवत् १०११ समये । निजकुलघवलोयं
a रिपोर्ट में इसका नाम 'जंजाहूति' दिया है। चीनी यात्री
र दिव्यमूर्तिस्व (शी)ल: स (श) मदमगुणयुक्त. सर्वसत्वा
हुनत्सोग ने अपने यात्रा विवरण में 'जेजाभुक्ति' का नुकपी (IX)सुजनः जनिततोषो धंगराजेन मान्यः प्रण- उल्लेख किया है जिझौती या जेजाकभुक्ति समस्त प्रदेश मति जिननाथ भव्व (व्य) पाहिल (ल्ल) नामा का नाम है। यहाँ की झीलें प्रसिद्ध है। यहां नगर में (II) १॥ पाहिल वाटिका १ चन्द्रवाटिका २ लघ हिन्दू और मुसलमानों के स्मारक भी मिलते हैं। जैन चन्द्रवाटिका ३ स (श) कर वाटिका ४ पंचाइतल संस्कृति की प्रतीक जैन मूर्तियां भी यत्र-तत्र छितरी हुई बाटिका ५ पाम्रवाटिका ६ घ (घ)गवाड़ी ७ (IIX) मिलती हैं। कुछ समय पहले खुदाई करने पर यहाँ बहुतपाहिलवसे (शे) तु क्षये क्षीणे अपरवंशो यः कोपि सी जैन मूर्तियां मिली थीं, जो संभवतः सं० १२०० के तिष्ठति (IX) तस्य दासस्य दासोयं मम दत्तिस्तु लगभग थीं। उनमें से एक ललितपुर क्षेत्रपाल में और पालयेत् ।। महाराज गुरु स्त्री (श्री) वासवचन्द्रः । शेष बांदा में विराजमान हैं। (IIx) (शा)वसा(ख) सुदि ७ सोमदिने।
यहाँ एक २० फुट ऊँचा टीला है। वहां से अनेक