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अनेकान्त
तालिका संख्या ३२
५ पद्मावती कुक्कुट रक्तप्रयस्वत् पत्र, पाश, अंकुश, (शासन देवता)
वीजपूरक। देवता वाहन वर्ण आयुष
विशेष
६ मातंग गज सित नकुल, बीजपूरक १ पावं कूर्म श्याम वीजपूरक, गजानन
७ सिद्धायिका सिंह नील पुस्तक, अभय, वाण, उरग, नाग, नकुल १
मातुलिंग २ गोमुख मबर(?) हेम वर, प्रक्ष-सूत्र, गजानन३
तालिका संख्या ३३ पाश, बीजपूरक
प्रतिहार
मायुध . पक्रेश्वरी ताय हेम वर, वाण, पाश, चक्र,
फल, वज, अंकुश, दण्ड । शक्ति, शूल, नकुल ?
इन्द्रजय फल, बज्र, प्रकुश, दण्ड। (पाठवीं भुजा का विवरण
माहेन्द्र वज, वज फल, दण्ड। 'रूपमण्डन' में स्पष्ट नहीं
विजय वज, वज, फल. दण्ड । है । सम्भवत: चक्रेश्वरी के
धरणेन्द्र निधिहिस्त। दोनों हाथों मे चक्र है)
पपक निधिहिस्त। द्वादश भुजी४ चक्रेश्वरी के
सुनाभ विवरण नहीं है। पाठ हाथों में चक्र, दो में
सुरदुन्दुभि वज और दो हाथों में
जन सम्प्रदाय के देवताओं के चार वर्ग ज्योतिषी, मातुलिंग है।
भुवनवासी, व्यन्तर वासी और विभानवासी हैं। इनमे ४ अम्बिका सिंह पीत नाग, पाश, अकुश पुत्र५ ईशान. ब्रह्मा प्रादि विमान वासी, यक्ष, व्यन्तर देव, १. अपरा० (२२११५५) के अनुसार पाश्र्व के मायुध
दिक्पाल, भुवनवासी और नक्षत्रादि ज्योतिषी देवता कोटि
मे हैं । 'रूपमण्डन' (६७-११) में नक्षत्र मौर राशियों धनुष, बाण, भृण्डि और मुद्गर है।
की भी गणना है । जो जैन सम्प्रदाय के अनुसार ज्योतिष २. अपरा० (२२११४३) के अनुसार वृष है।
देव कोटि मे पाते हैं। 'रूपमण्डन' के इस अध्याय में गोमुख के प्रसग मे 'गजानन' पाठ अशुद्ध है, किन्तु
सत्ताइसों नक्षत्रों और द्वादश राशियों की गणना मात्र है, इसे वृषानन माना जा सकता है। ४. 'रूप मण्डन' में चक्रेश्वरी के दो रूप बताये गये हैं। -
इनके स्वरूप का विचार नही है।
-- एक तो प्रष्टभुजी (६१८) और दूसरा द्वादशभुजी पत्रेणोपास्यमाना च सुतोत्सगा तथाऽम्बिका । 'नेमि. (६।२४)।
नाथ चरित' में (जैन भाइकनोग्राफी पृ० १४२) अम्बिका 'रूपमण्डन' के अनुसार अम्बिका का वर्ण पीत और के एक दाहिने हाथ मे पाम्रमजरी दूसरे मे पास तथा मायुध नाग, पाश, अंकुश और चौथे हाथ मे पुत्र बाएं एक हाथ मे पुत्र और दूसरे में अंकुश बताया गया बताया गया है । उपेन्द्र मोहन ने 'पुत्र' का उचित है। पाठ 'पत्र' बताया है। अपरा. (२२१२२२२) में ६. अपरा. (२२११२३) के अनुसार बर ।
अम्बिका को टिभुजी और उनका वर्ण हरा कहा गया ७. अपरा० (२२११५६) के अनुसार वर । है। इनके दोनों हाथो में एक में तो फल और दूसरा हाथ ८. अपरा० (२२३८) के अनुसार वर्ण, कनक मौर पर मुद्रा में कहा गया है। इनके साथ इनका पुत्र भी एक हाथ मे फल तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा मे है । होना चाहिए
प्रतिमा द्विभुज है।