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जन चम्पू काम्यों का अध्ययन
के मध्य में ही चम्पू काव्यो का ग्रन्थात्मक सृजन प्रारम्भ नहीं है। यहाँ केवल इस रचना का साहित्यिक मूल्यांकन हुमा। मिश्र शैली के विकास के अन्वेषण मे दक्षिण भार- मात्र किया गया है। वह अपने युग के सामाजिक व तीय भाषामो में उपलब्ध इसके रूपों का सांकेतिक उल्लेख सांस्कृतिक परिवेश, चिन्तन और निष्ठामो को भी व्यक्त किया गया है।
करता है।" इस शोध प्रबन्ध में २४५ चम्म् काव्यों का उल्लेख जहां तक जैन चम्पू काव्यों का प्रश्न है इस ग्रन्थ मे किया गया है जिनमे मे ७४ चम्पू काव्य तो विविध ६ ग्रन्थो का उल्लेख है। इनमे से "समरादित्य कथा" स्थानों से प्रकाशित भी हो चुके है। इस शोध प्रबन्ध मे को तो लेखक ने देखा ही नही प्रतीत होता, क्योंकि उसके १०२ चम्पू काव्यो का कुछ विस्तृत पलोचनात्मक परिचय कर्ता का नाम प्रज्ञात लिखा है और ग्रन्थ को अप्रकाशित दिया गया है । वर्ण्य वस्तु और मूल श्रोतो के अन्वेषण से बतलाया है-यह दोनो ही बाते सही नहीं है। यदि जो तथ्य सामने आये है उनसे ज्ञात होता है कि रामायण समरादित्य कथा चम्पू काव्य है तो वह कहा प्राप्त है या पर ३६, महाभारत पर २७, भागवत पर ४५, शिव- उमे चम्पू मानने का प्राधार क्या है ? इसका उल्लेख तो पुराण पर १७, अन्य पुराणों पर २३, जन पुराणों पर लेखक को करना ही चाहिए था। मेरे ख्याल से तो सम६, ऐतिहासिक और सामान्य व्यक्तियों के चरित्रो पर ४८ रादित्य कथा चम्पू काव्य नहीं है। अन्य ५ जैन चम्मू तथा यात्रा वृत्तों पर १३ चम्पू काव्य लिखे गये है। दिगम्बर विद्वानो के रचित हैं यथास्थानीय देवतामों के चरित या उनके महोत्सवों पर २५, १. जीवधर चम्प--हरिचन्द्र प्राधार, उत्तर पुगण तथा विचारात्मक या काल्पनिक कथा पर प्राश्रित ५ २. पुरुदेव चम्पू-अरहदाम, प्राधार प्रादिपुराण चम्पू काव्य हैं।
३. , , -जिनदास शास्त्री, उत्तर पुगण प्रथम चम्पू काव्य 'नल चम्पू' है+। १५वी शताब्दी
४. भरतेश्वराभ्युदय-प्राशाधर, प्रादिपुगण तक केवल २० चम्प काव्य उपलब्ध होते है। शेष बाद के ५. यशस्तिलक चम्पू-सोमदेव मूरि, उत्तर पुराण २५० वर्षों में लिखे गये है। कुछ कवि राज्याश्रित हैं। इन पाचो मे से भी जिनदास शास्त्री का पुरुदेव कुछ विविध मठो, मन्दिरो या सामन्तों से मबधित है। चम्पू का कोई विवरण नही दिया गया। प्राशाधर का पौगणिक चम्प काव्यो की मख्या सबसे अधिक है, उसके भरतेश्वराभ्यदय चम्प भी अप्रकाशित होने से त्रिपाठीबाद चरित चम्पू का पहला स्थान है। चम्पू काव्य के स्मतिशास्त्र की भूमिका के आधार से ही इसका उल्लेख निर्माण मे भक्ति आन्दोलन और दरबारी वातावरण ने किया गया है। मेरी राय मे यह काव्य है चम्पू नही । प्रभावकारी शक्तियो के रूप में कार्य किया है। १६वी और शेप तीनो चम्पू प्रकाशित होने से उन्ही का परिचय शताब्दी के बाद के भक्ति परक चम्पू काव्यो मे भी दिया गया है। इनमे से यशस्तिलक चम्पू का तो विशिष्ट अंगार और विलासता के उत्तान चित्र प्राप्त होते है। अध्ययन एक स्वतन्त्र अध्याय के रूप में अन्त के १६५ से शेव चम्पू काव्य इससे बचे हुए है। उत्तर भारत में केवल ३५६ पृष्ठो मे किया गया है। प्रत. उमको छोड कर ४६ चम्पू काव्यों की रचना हई है शेष दक्षिण भारत मे अन्य दो चम्पयो के विवेचन का प्रावश्यक प्रश यहा दिया लिखे गये है।
जा रहा है। __ अन्त मे एक लोकप्रिय और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण चम्पू ग्रन्थ के पृष्ठ 8 में लिखा गया है कि "संस्कृत की काव्य यशस्तिलक का विस्तृत मालोचनात्मक परिचय तत्सम पदावली से सम्पन्न तमिल भाषा की एक शैली प्रस्तुत किया गया है। इसका उद्देश्य इस भ्रान्ति का
+ जिनरल कोश में इसे काव्य बनलाया है। मोना निराकरण है कि चम्पू काव्यो की अपनी कोई विशेषता
गिर के दि० भट्टारकीय भडार में इसकी प्रति बत. + प्राकृत कुवलयमाला उद्योतन सूरिरचित ही भारत का लाई गई है अत: देख कर निर्णय कर लेना मावप्राचीन चम्पू काव्य है।
पावश्यक है।