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पाश्र्वाभ्युदय काव्यम् : एक विश्लेषण
प्रो० पुण्कर शर्मा एम. ए.
मेघदूत की अनुकृति पर प्रचलित दूतकाव्य-परम्परा मरुभूति (पार्श्वनाथ तीर्थकर) छोटा भाई। कमठ दुश्चरित्र मे श्री जिनसेनाचार्य के चतुः सर्गात्मक "पाश्र्वाभ्युदय- था। उसने मरुभूति की सुन्दरी पत्नी वसुन्धरा पर कुदृष्टि काव्यम्" का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। प्रथ के अन्त में डाली तो उसकी शिकायत राजा अरविन्दराज तक पहुंची। दिए गए काव्यावतरण से पता चलता है कि बकापुर के अरविन्दराज ने कमठ की भर्त्सना की और उसे नगर से राजा अमोघवर्ष ने श्री जिनसेनाचार्य को गुरु बनाया था। निकाल दिया। बाद में मरुभूति सहज प्रेम के कारण उसे एक बार उसकी राजसभा मे कालिदास और उन्होंने ढढने निकला। उस समय वह धूर्त कमठ सिन्धु नदी के उपस्थित विद्वानों के प्रति अनादर प्रगट करते हुए मेघदूत तट पर तपस्वी के छद्य रूप में बैठा हा दिखाई दिया। पढ़कर सुनाया। तब विनयसेन नामक एक सहपाठी के मरुभूति ने उसे प्रणाम किया, किन्तु धूर्त तपस्वी ने अपना कहने पर श्री जिनसेनाचार्य ने उठकर कहा कि यह तो मंह फेर लिया। इसके बाद संभवत उसने मरुभूति की एक प्राचीनतर काव्य की चोरी है। इस पर उन्हें वह हत्या भी कर डाली। इसी मरुभूति ने पाश्र्वनाथ के रूप प्राचीनतर काव्य लाकर दिखाने को कहा गया तो उन्होंने मे दुबारा जन्म लिया था और कमठ का जन्म अबुवाह के एक सप्ताह का समय मागा। इस बीच उन्होने "पाश्व- रूप में हया था। अंबूवाह या शबर दैत्य (?) को तीर्थकर भ्युदय काव्य" लिख डाला और राजसभा मे सुना भी के दर्शन से पूर्वजन्म की स्मृति हो पाई तो उसने तीर्थकर दिया। बाद में रहस्योद्घाटन करके कालिदास को सम्मान को यद्ध के लिए चुनौती दी। तीर्थकर के मौनधारण को भी दिलाया।
उसने कायरता मानकर कहा कि वे मेघ बनकर अलकापुरी इससे लेखक ने स्वय को कालिदास का समकालीन जायें और उसकी पत्नी को, जो कि पूर्वजन्म मे वसुन्धरा सिद्ध करने का प्रयत्न किया है, किन्तु पाठक को इसमे थी, उसका सन्देश सुना पाये। इसके बाद भी तीर्थकर भ्रान्त होने की आवश्यकता नहीं है। वस्तुत: लेखक ने मोन रहे, किन्तु उस देस्य ने उन्हे अलकापुरी जाने का स्वकीय कृति द्वारा महाकवि कालिदास मे प्रतियोगिता
मार्ग बताना शुरू कर दिया। बीच-बीच मे उन्हे मार करनी चाही है। ऐसा प्रयत्न अन्य दूतकाव्य-लेखको ने भी
डालने की धमकी भी देता रहा। सदेश-कार्य समझा देने किया है । किन्तु यह एक सर्वविदित तथ्य है कि "अनुकृति ।
के बाद भी उसने पार्श्वनाथ को चुप देखा तो उसने एक तो प्रसादन (चापलसी) का एक उपाय मात्र है", पर्वत-खण्ड उन पर गिराना चाहा। उस समय नागराज पार्वाभ्युदयकाव्य में भी मेघदूत का अनुकरण किया गया और उसकी पत्नी भी वहाँ मा गये थे। नागराज ने है और संभवतः इसमे मौलिकता का भी कुछ अंश है।
तीर्थकर की स्तुति करते हुए दैत्य को क्षमा कर देने की तीथकर
प्रार्थना की। उस समय तीर्थकर को कैवल्य-प्राप्ति हो कथानक-धनपति कुबेर का सेवक अबुवाह अपने
चुकी थी। दैत्य ने भी अपनी भूल स्वीकार करके क्षमाकाम में प्रमाद करने के कारण एक वर्ष के लिए अलकापुरी
याचना की और उसे मुक्ति मिल गई। से निष्कासित कर दिया गया था। एक बार उसने तीर्थकर पार्श्वनाथ को अपने विमान में स्थित देखा तो इस कथानक में पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म के अस्पष्ट से उसे पूर्वजन्म की स्मृति से क्रोध हो पाया। पूर्वजन्म मे ये प्रसङ्ग हैं। टिप्पणियों की सहायता के बिना इन्हें समझना दोनों सगे भाई थे। कमठ (प्रबुवाह) बड़ा भाई था और कठिन ही है। प्रबुवाह और शंबर दैत्य का ऐकात्म्य भी