Book Title: Anekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 423
________________ अनेकान्त ८७ श्रावक व्रत विधान का अनुष्ठाता: १०. साहित्य समीक्षा-परमानन्द सा. २०१०२८६,३३७ पानन्द श्रमणोपासकबालचन्द सि. शा. ४७६ १०१साहित्य-समीक्षा-डा.प्रेमसागर ३०० ८८ श्री शिरपुर पाश्र्वनाथ स्वामी विनति १०२ सिड-स्तुति-मुनि पपनन्दि २६१ , नेमचन्द्र धन्नूसा जैन १०३ सुजानमल की काव्य-साधना-गंगाराम गर्ग १२० ८६ षट्खण्डागम-परिचय-बालचन्द सि. शास्त्री २२० १०४ सूरदास और हिन्दी का जैन पद काव्य (एक १. बसण्डागम और शेष १८ अनुयोगद्वार तुलनात्मक विश्लेषण)-डा.प्रेमसागर २३३ बालबन्द सिवान्तशास्त्री २७५ सच्चा जन-डा.दशरथ शर्मा १०५ सूत्रधार मण्डन विरचित रूपमण्डन में न १२ संतुलन-अपना व्यवहार-मुनिश्री कन्हैयालाल ५० मूर्ति लक्षण-अगरचन्द नाहटा २६४ ६३ संस्कृत के जैन प्रबन्ध-काव्यों में प्रतिपादित १०६ स्थायी सुख और शान्ति का उपाय-६० ठाकुर . शिक्षा पद्धति-डा० नेमीचन्द शास्त्री दास न ६४ संस्मरण-40 हीरालाल सि. शास्त्री र १०७ स्यावाद का व्यावहारिक जीवन में उपयोग१५ समय पीर साधना-साध्वी श्री राजमती २७ पं.चैनसुखदास न्यायतीर्थ ९६ समय का मूल्य-मुनिश्री विद्यानन्द ३५६ १०८ स्व. बाबू छोटेलाल जी का वंश वृक्ष१७ सम्यग्दृष्टि का स्तवन-बनारसीदास १ थी नीरज जैन १८ सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थवार्तिक पर षट् १०६ स्व-स्वरूप में रम २३३ खण्डागम का प्रभाव-बालचन्द सिद्धान्तशास्त्री ३२० ११.हिन्दी जैन कवि और काव्य-डा. प्रेमसागर ९सरस्वति-स्तवनम्-मुनि श्री पद्मनन्दि ३३९ जैन ३४. [पृष्ठ ३८२ का शेषांश उधर मानन्द श्रमणोपासक बहत शीलवतों से अपने में-मरण को प्राप्त होकर सौधर्म कल्प के भीतर परुण को सुसंस्कृत करते हुए बीस वर्ष तक श्रमणोपासक की विमान में देव पद पाया। वह वहां से न्युन होकर महापर्याय में रहा। उसने ग्यारह प्रतिमानों का यथाविधि विदेह क्षेत्र से सिद्धि को प्राप्त करेगा। परिपालन किया और मासिक संलेखना के साथ पालो- - चना-प्रतिकमणादि करते हुए कालमास मैं-मृत्यु के समय १. वही १,६८-१०

Loading...

Page Navigation
1 ... 421 422 423 424 425 426