Book Title: Anekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 359
________________ अग्रवालों का जैन संस्कृति में योगदान परमानन्द जैन शास्त्री साह टोडर के तीन पुत्रों का ऊपर नामोल्लेख किया में बहुत भारी धन व्यय किया। पोर ५०१ स्तूपों का गया है। उनमें प्रथम पुत्र ऋषभदास अपने पिता के एक समूह और तेरह स्तूपों का दूसरा। इस तरह कुल समान ही धर्मनिष्ठ, जिनवाणी भक्त और गुणी था। ५१४ स्तूपों का निर्माण कराया। इन स्तूपों के पास ही साह टोडर ने भागरा में एक जिन मन्दिर का निर्माण १२ द्वारपाल मादि की स्थापना की। इनकी प्रतिष्ठा का कराया था, जिसका उल्लेख कविवर भगवतीदास अग्रवाल __ कार्य वि० सं० १६३० (ई० सन् १५७३) में द्वादशी मे री मन बुधवार के दिन प्रात.६ घड़ी व्यतीत होने पर सूरि मन्त्र १५९४ मे रची जाने वाली 'प्रगलपुर जिनवन्दना' नाम पूर्वक किया३ । उस समय साहु टोडर ने वहां चतुविध की कृति में किया है। इससे स्पष्ट है कि साह टोडर ने संघ को आमन्त्रि किया था। और सभी ने साह टोडर उक्त मन्दिर सं०१६५१ से पूर्व ही बनाया था। उनके को शुभाशीर्वाद दिया था। तथा संवत १६३२ में कवि उस मन्दिर में उस समय प्रात्म-साधिका हमीरी बाई राजमल जी से जंबू स्वामिचरित की रचना करवाई थी नाम की एक ब्रह्मचारिणी रहती थी, जिसका तपश्चरण और भी अन्वेषण करने पर साह टोडर के धार्मिक कार्यों से शरीर क्षीण हो रहा था और जो सम्मेदशिखर की का परिचय मिल सकता है । यात्रा करके वापिस पाई थी। साह टोडर के ज्येष्ठ पुत्र रिषीदास या ऋषभदास मथुरा के ५१४ स्तुपों को जीर्णोद्धार कार्य भी अपने पिता के समान ही राजमान्य तथा धर्म कर्म में एक समय साह टोडर सिद्ध-क्षेत्र की यात्रा करने निरत था । उसकी जिनवाणी पर बड़ी श्रद्धा थी। उसने अपने पढ़ने या सुनने के लिए ज्ञानार्णव की संस्कृत टीका मथुरा गए थे। वहां उन्होंने मध्य में बना हुमा जम्बू तात्कालिक विद्वान प० नयविलास से बनवाई थी। पं० स्वामी का स्तूप देखा, और उसके चरणों में विद्युच्चर नयविलास जी संस्कृत के सुयोग्य विद्वान थे, और मागरा मुनि का स्तूप भी देखा । तथा पास-पास बने हुए मन्य में ही रहते थे। उस समय प्रागरा में अनेक विद्वान, साधुनों के स्तूप भी देखे, जिनकी संख्या कहीं पांच कही भट्टारक और श्रेष्ठिजनों का प्रावास था, जो निरन्तर माठ, कही दश और कहीं २० थी। साह टोडर ने उनकी अपने धर्म का अनुष्ठान करते हुए जीवन-यापन करते थे। जीर्ण-शीर्ण दशा देखी, जिससे उन्हें बहुत दुख हुमा और उस समय आगरा में ४८ जैन मन्दिर थे जिनमें श्रावकगण तत्काल ही उनके समुदार की भावना बलवती हो उठी। धर्म का अनुष्ठान करते थे। फलतः उन्होंने शुभ दिन, शुभ लग्न में उनके समुद्धार का पांडे राजमल ने साहु टोडर के ज्येष्ठ पुत्र ऋषभदास कार्य प्रारम्भ कर दिया। साहु टोडर ने इस पुनीत कार्य के लिए ऋषभोल्लास ग्रंथ४ के निर्माण करने का विचार १. देखो, जंबूस्वामिचरित ७३ से ७७ श्लोक पृ०६, राजा T ETaarti २. टोटरसाहु करायो जिनहर रहइ हमीरी बाई हो, स्तूपानां तत्समीपे च द्वादश कारिकादिकम् ॥ तपलंकृत वपु मतिकृश काया जात शिखरि कर माई हो। संवत्सरे गताब्दानां शतानां षोडशं क्रमात् । जात शिखरि करि प्राई वातिका तिहिं थल पूजकराई, शुद्धस्त्रिश......साधिकं दधति स्फुटम् ॥ बंद्यो देव जिनेश जगतपति मस्तकु मेइणि लाई॥ -जंबू स्वामिचरित ११८, ११९ पृ० १३ -देखो, जैन संदेश शोघांक भा० २३ पृ० १९१ ४. देखो, भनेकान्त वर्ष १४ फिरण ३-४१० ११३

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