Book Title: Anekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 366
________________ कुछ पुरानी पहेलियां पविन फिरे विदेश मुख विन कथा बसाणे। सकल शास्त्र भंडार पढत श्लोक नवि जाणे॥ भविक जीवने जागवे सुपुरुषनी संगति करे। कवण नारि ते अर्थवो ब्रह्मज्ञान इम उच्चरे ॥१७॥ पोषी श्यामल वर्ण शरीर नहि कोयल नहि मधुकर। शुंडा दर प्रचंड नहि गणपति नहि गयवर ॥ बलपूरित नित रहत नहि सरवर नहि जलबर। हस्त पाय सिर रहित पेट मोटो प्रति सुखकर ॥ बचन वदत प्रति प्रेम को यज्ञोपवीत ऊपर परत । ब्रह्म ज्ञानसागर वदति एह अर्थ को नर करता मोट इति श्री हरिपालि कवित्तानि समाप्त ।। मुख्तार श्री जुगलकिशोरजी का ६०वां जन्मजयंती उत्सव एटा में सानन्द सम्पन्न मगसिर शुक्ल एकादशी शुक्रवार ता. २३ दिसम्बर को समन्तभद्रोदित जिन शासन के प्रचार में दे देने का १९६६ को मुख्तार श्री की १०वीं जन्म-जयन्ती के उत्सव निश्चय किया। जिसकी योजना बाद में प्रकट की मे मुझे उपस्थित होने और समागत श्रद्धांजलियों एव जावेगी। उसका एक ट्रस्ट बनाने का भी विचार व्यक्त शुभकामनायो प्रादि के पत्रों को देखने तथा सुनाने का किया। इसके अतिरिक्त उक्त अवसर पर ५०१) रुपये सौभाग्य प्राप्त हुआ। उत्सव डा. ज्योतिप्रसाद जी एम. का दान, जैन मन्दिरों, तीर्थक्षेत्रों, संस्थानों, गोपालदास ए. एल. एल. बी. पी. एच. डी लखनऊ की अध्यक्षता मे बैरयास्मृति ग्रंथ,सूखाग्रस्त क्षेत्र और गोहत्याबन्दी प्रान्दोप्रागत तथा स्थानीय विद्वानो के भाषणादि पूर्वक सानन्द लन की सहायतार्थ प्रदान किये है। जिसमे १०) रुपये धर्मशाला में सम्पन्न हुआ। एटा की दिगम्बर जैन समाज अनेकान्त को भी सधन्यवाद प्राप्त हुए हैं । अन्त में श्रद्धालु के मंत्री मुशीलचन्द जी ने अभिनन्दन पत्र पढ़ कर सुनाया जनो ने विविध पुष्प मालाभों से मुख्तार साहब का पौर फ्रेम मे जडा हुमा अभिनन्दन पत्र भेंट किया। देश सत्कार किया। के गण्यमान विद्वानों एवं प्रतिष्ठित सज्जनों के श्रद्धांजलि जाल इसमे कोई सन्देह नहीं कि इस साहित्य तपस्वी का पत्र और तार पाये थे जिनकी सख्या १०० के लगभग थी। सार्वजनिक अभिनन्दन होना चाहिए। समाज के नतामा श्रद्धाजलि पत्रों में मुख्तार सा० के दोघं जीवन की कामना, को चाहिए कि वे विवेक से काम लें। और इस वयोवृद्ध उनका सार्वजनिक अभिनन्दन करने की प्रेरणा और कुछ विद्वान को अभिनन्दन अथ भेंट कर उनका उचित मे मुस्तार श्री की निःस्वार्थ सेवाग्रो का गुण कीर्तन सत्कार करें। समाज को साहित्य-सेवियों का सत्कार किया गया था। मुनि श्री विद्यानन्द जी का प्राशीर्वादा करना परम कर्तव्य है । प्राशा है समाज उनके उपकारों त्मक पत्र भी मिला था। के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करेगी। मुख्तार साहब ने समन्तभद्र स्मारक की ढाई लाख अन्त मे डा.श्रीचन्दजी ने उपस्थित जनता को धन्यवाद वाली योजना के सम्बन्ध में समाज की भोर से कोई प्रयल देते हए लडडमों की एक-एक थेली भेंट कर उत्सव को होता न देख कर अपनी संकल्पित २५ हजार की रकम पौर भी मधुर बना दिया। -परमानन्द शास्त्री

Loading...

Page Navigation
1 ... 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426