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अनेकान्त
अनन्तमती, गान्धारी, महामानसी, जालमालिनी, मानुजी; ४. मूर्तियां या तो क्रमश अंकित नहीं की गई हैं दायी पंक्ति में सात-जया, मनन्तमती, वैराता, गौरी, या उनके नाम यथास्थान उत्कीर्ण नहीं किये गये हैं। क्योकि काली, महाकाली, विजंसकला; नीने की चार के नाम या उनका क्रम उपर्युक्त तीनों ग्रंथोंकी नामावली से भिन्न है। तो वे पढ़ नहीं सके है या उन्होंने लिखे नहीं हैं । इन नामों इसके अतिरिक्त श्री नीरज जैन ने भी इन नामों के के माधार पर हम कुछ निष्कर्ष निकालते हैं :
संबन्ध में कुछ उल्लेखनीय निष्कर्ष निकाले है,५२ जिन्हें १. उन्हें उत्कीर्ण करने या कराने वाला व्यक्ति यहा उद्धृत किया जाता है :अधिक शिक्षित नही था क्योंकि उसने भाषा सबन्धी अनेक १. प्रथम तीर्थङ्कर आदिनाथ की यक्षी चक्रेश्वरी शोचनीय त्रुटियां की हैं।८।
को प्रजापति लिखा गया है। यह शब्द प्रायः कुंभकार के २. अनन्तमती का नाम दो बार उत्कीर्ण किया लिए प्रयुक्त होने से चक्र गक भी कहा जाता है और चक्रे. गया है अत: यह स्पष्ट है कि कोई एक नाम, प्रमादवश श्वरी का समानार्थक प्रतीत होता है। छोड़ दिया गया है।
२. तीसरे नीथकुर सभवनाथ की शासनदेवी प्रज्ञप्ति ३. यह नामावलि तिलोयपण्णत्ति४६, अपराजित- को बुधदात्री के नाम से दर्शाया गया है। यह भी ममाना. पृच्छा५० और प्रतिष्ठा सारोबार५१ की नामावली से कुछ क नाम है। भिन्न है।
३. पांचवे तीर्थङ्कर सुमतिनाथ की यक्षिणी को ४६. 'जक्खीओ [१] चक्केस्सरि-[२] रोहिणी- पुरुपदत्ता के स्थान पर मानुजा सज्ञा दी गई है जो पर्याय [३] पण्णत्ति-[४] वसिखलया।
वाची ही है। [५] वज्जकुसाय [१] अप्पदिचक्केसरि
४. अठारहवे तीर्थङ्कर अरनाथ की यक्षी तारावती [७] पुरिसदत्ता य ।।
को विजया लिखा है। श्री रामचन्द्रन ने इस देवी का नाम [ मणवेगा [8] कालीमो तह [१०] जाला- अजिता लिखा है जो विजया से अधिक साम्य रखता है। मालिणी [११] महाकाली।
५. अन्तिम तीयंकर भगवान महावीर की शासन[१२] गउरी [१३] गधारीमो [१४ वेरोटो देवी सिद्धायिका का इम फलक पर सरस्वती नाम स [१५] सोलसा प्रणतमदी ।।
स्मरण किया गया है। [१६] माणसि-[१७] महमाणसिया [१८] जया य
६-७. दूसरे तीर्थ र अजितनाथ की रोहिणी का [१६-२०] विजयापराजिदाओ य ।
नाम इस फलक पर नहीं दिया गया है, परन्तु चौदहवे [२१] बहरूपिणि-[२२] कुभुडी [२३] पउमा
तीर्थङ्कर की दवी अनन्तमती का नाम दो स्थानों पर [२४] शिवयिणीमो य ॥'
माया है। स्पष्ट हो यह मनाड़ी कलाकार के प्रमाद से तिलायपण्णत्ती, भाग १, महाधिकार ४, गाथा
माया ज्ञात हाता है। ५०. 'चतुर्विशतिरुच्यन्ते क्रमाच्छासनदेविकाः ।।
[१६] महामनसी च [१७] जया [१८] विजया [१] चक्रेश्वरी [२] रोहिणी च [३] प्रज्ञा
[१६] चापराजिता। [v] बचशृखला।
[२०] बहरूपा च [२१.२२] चामुण्डाम्बिका [५] नरदत्ता [६] मनोवेगा [७] कालिका [२३] पावती तथा ।। [+] ज्वालमालिका॥
[२४] सिद्धायिकेतु देव्यस्तु चतुर्विशतिरहताम् ।' [6] महाकाली [१०] मानवी च [११] गौरी शुक्ल, डी. एन. : वास्तुशास्त्र, भाग २, पृ. २७१-७२ [१२] गान्धारिका तथा ।
(पर उद्धृत)। [१३] विराटा तारिका [१४] चवानन्तमतिर च ५१... [१५] मानसी।
५२. अनेकान्त, (अगस्त '६३), वर्ष १३,मक ३, पृष्ठ १०१